DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :स्मृतेश् च 1/2/6
सूत्र संख्या :6

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (स्मृतेः) स्मृति में (च) भी बतलाया गया है।

व्याख्या :
भावार्थ- स्मृति में भी जीव ब्रह्मा का भेद प्रकट किया गया है। जैसा कि गीता में लिखा है कि ऐ अर्जुन! परमात्मा सब जीवों के भीतर हृदय में विराजमान हुआ है और सब जीवों को जो माया के यन्त्र पर सवार हैं, हरकत देते हैं। प्रश्न- क्या जीव अपनी इच्छा से कर्म नहीं करता? इस स्मृति से विदित होता है कि जिस ओर परमात्मा चक्र देता है उसी ओर जीव चेष्टा करता है। उत्तर- भोग के सम्बन्ध में निश्चय जीव परतन्त्र है; इस कारण जो कर्म जीव अपने भेग के कारण करता है, उसमें सफलता अथवा असफलता सब परमात्मा के नियम से होती है। जीव अपने पुरूषार्थ से वत्र्तमान भोग को बदल नहीं सकता; गीता का अर्थ इन्हीं कर्मों से है। प्रश्न- इन श्रुतियों में उससे दूसरा देखने और सुननेवाला कोई नहीं, जिसे स्पष्ट शब्दों में परमात्मा से पृथक देखने व सुनने वाले का खण्डन किया गया है और गीता1 में भी श्रीकृष्ण कहते हैं कि सब क्षेत्रों में तू मुझे क्षेत्र के जानने वाला समझ। उत्तर- महात्मा कृष्ण और श्रुति के उपदेश से उन मनुष्यों का खण्डन होता है कि जो कर्म को फलदाता मानतें हैं, क्योंकि कर्म में देखने अथवा सुनने की शक्ति नहीं। भला जो कर्म देखसुन नहीं सकता वह फल कैसे दे सकता है? प्रश्न- बहुत से मनुष्य जीव और ब्रह्मा का निश्चयपूर्वक भेद नहीं मानते; किन्तु उपाधि से कल्पित भेद विचार करते हैं। जैसे एक आकाश घट अथवा मठ उपाधि के कारण घटाकाश अर्थात् घट में बास करने वाला आकाश व गृह में रहनेवाला आकाश कहलाता है। उत्तर- यह शब्द सत्य नहीं; क्योंकि कोई नहीं कहता कि घटाकाश लाओं, मठाकाश लाओ। जीव और ब्रह्मा का भेद श्रुति अथवा व्याससूत्र से स्पष्ट प्रकट है। प्रश्न- सर्व-व्यापक ब्रह्मा, जीव के आधे स्थान पर जो बहुत छोटा है, किस प्रकार रह सकता है; इस कारण जीव ही का उपदेश ज्ञान होता है?