सूत्र :शब्दविशेषात् 1/2/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (शब्दविशेषात्) मुख्य श्रुतियों के शब्द से भी।
व्याख्या :
भावार्थ- श्रुति के मुख्य शब्दों से भी विदित होता है कि जीव ब्रह्मा से पृथक है। जैसे कहा कि आत्मा के भीतर जो पुरूष है और स्पष्ट विद्यमान है कि जीवात्मा के भीतर सिवाय परमात्मा के दूसरा नहीं जा सकता! वृहदारण्यक उपनिषद् और शतपथ ब्राह्य से भी प्रकट किया है कि वह आत्मा से पृथक् और आत्मा के भीतर अन्र्यामी रूप से जैसा कि याज्ञावलक्य ने मैत्रैयी से कहा है; अतः जीवात्मा1 के भीतर रहने वाला पुरूष वही (मनोमय) कहानेवाले परमात्मा को विद्यमान करनेवाला है; जो जीवात्मा से पृथक् है। जीव ब्रह्मा के भेद पर जीव और युक्ति देते हैं।