DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :सर्वत्र प्रसिद्धोपदेशात् 1/2/1
सूत्र संख्या :1

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जिन उपनिषदों के शब्दों में स्पष्ट ढंग पर ब्रह्मा के लक्षण पाये जाते हैं, उनको तो प्रथम पाद में बतला दिया; अब द्वितीय पाद में उन शब्दों की प्रसिद्धि; जिनमें ब्रह्मा के चिहं नहीं हैं, परन्तु अर्थ उनसे ब्रह्मा का ही है, व्यवस्था करेंगे। पदार्थ-(सर्वत्र) प्रत्येक स्थान पर (प्रसिद्धोपदेशात्) प्रत्यक्ष उपदेश होने से। भावार्थ- छान्दोग्य-उपनिषद्1 में बताया गया है कि यह सब जगत, जो दीखता है, निश्चयपूर्वक ब्रह्मा ही है; क्योंकि उसी में में लय हो जाता है; इसलिए उसकी उपासना करो? क्योंकि वह शान्ति से प्राप्त होता है।

व्याख्या :
प्रश्न- क्या परमात्मा के बिना और किसी प्रकार शान्ति नहीं हो सकती है? उत्तर- बहुत-सी वस्तुओं के देखने से किसी में राग और किसी में द्वेष उत्पन्न होता है। जब एक ही वस्तु हो, तो किसमें राग और किसमें द्वेष हो; इस कारण जब जीवात्मा बाहर की प्रकृति से बने हुए जगत् को देखता है, तब तक उसे राग-द्वेष बना रहता है; जिससे आत्मा के भीतर अशान्ति बनी रहती है, रागवाली वस्तु की इच्छा होती है, उसके प्राप्त न होने से क्लेश रहता है और द्वेष वाली वस्तु से भय बना रहता है। दोनों अवस्थाओं में जीव अशान्त रहता है; परन्तु जिस परमात्मा के स्वरूप के संग सम्बन्ध करता है-जैसे कि सुषुप्ति में-तो शान्ति हजाती है। प्रश्न- एक जगह सब वस्तुओं को ब्रह्मा बतलाया है, दूसरी जगह बतलाया है कि निश्चयपूर्वक पुरूष यज्ञरूप हैं जैसे-यज्ञ इस इस लोक में पुरूष होता है, ऐसे ही वह दूसरे जन्म यज्ञ कराता है। अर्थात् जो मन के संयोग से व प्राण अथवा शरीर के सम्बन्ध से विकार को प्राप्त होता है। अब यहाँ यह प्रथम उत्पन्न होता है क क्या मनोमय, प्राणमय, प्राणमय, उन्नमय आदि ब्रह्मा से पृथक हैं वा ब्रह्मा ही हैं। उत्तर- जहाँ पर उपासना के लिये आये, वहाँ ब्रह्मा ही उचित है; शेष स्थानों पर श्रुति का अर्थ यह नहीं कि सब वस्तुएँ ब्रह्मा हैं; क्योंकि यदि सब वस्तुएँ ब्रह्मा होतीं तो किसी वस्तु की विधि अथवा किसी का निषेध, जो श्रुति करती है, वह सब निष्फल हो जाती। इस कारण श्रुति का अर्थ यह है कि जिस ब्रह्मा से यह जगत् बनता, स्थित रहता और नाश होता है, तुम उसी जगत् की वस्तुओं से मुक्ति की इच्छा रखने के स्थान उस ब्रह्मा से मुक्ति की इच्छा रक्खो। जबकि श्रुति ने स्पष्ट (जाहिरी ढंग पर) उपदेश किया है कि उपासना के योग्य केवल ब्रह्मा है, जीव और प्रकृति नहीं; इसलिये उपासना के स्थान पर ब्रह्मा और अन्य स्थानो पर जिसका लक्षण पाया जाये, पूर्व लेना उचित है। प्रश्न- यह किस प्रकार स्वीकार किया जावे कि वह ब्रह्मा सर्वाड़्रग प्रसिद्ध है? उत्तर- वेदान्त शास्त्र के जितने ग्रन्थ है, सब ग्रन्र्थों में ही जगत्कत्र्ता ब्रहा है उपासना-योग्य ब्रह्मा आनन्दस्वरूप है; इस कारण जहाँ कहीं जगत्कत्र्ता के उपासना योग्य होने वा आनन्दस्वरूप होने का वर्णन हो, तो शब्द चाहे कोई हो, उसका अर्थ जगत्कत्र्ता के उपासना योग्य और आनन्दस्वरूप ब्रह्माही लिया जावेगा। प्रश्न- प्रत्येक शब्द लेने के लिये कोई कौटी होनी चाहिए।

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: