DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :उपदेशभेदान् नेति चेन् नोभयस्मिन्न् अप्य् अविरोधात् 1/1/27
सूत्र संख्या :27

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ – उपदेश पृथक्-पृथक् होने से नहीं यदि यह हो दोष नहीं दोनों दशाओं में भी विरोध अथवा जिद्द न होने से ।

व्याख्या :
भावार्थ - क्योकि दोनो स्थानो में अलग अलग उपदेश है, इस कारण एक स्थान दूसरे के प्रत्याभिज्ञान नही है।यदि स्वीकार भी किया जावे, तो दोनो में विरोध न होने से कोई दोष नहीं। प्रश्न - एक स्थान में तो द्यौ को ब्रह्य के तीन पाद का आधार अर्थात् निवास स्थान स्वीकार किया है, जहाँ यह बताया गया है कि प्रथम पाद में तो सब भुत है और शेष तीन पाद द्यौ है, यह सीमा के कारण बताया बया। जबकि दोनो स्थान भिन्न भिन्न विभक्त अर्थात् प्रकट करने वाले चिन्ह है, तो यह किस प्रकार सम्भव हो सकता है कि एक द्यौलोक ही उसका आधार भी हो और उससे परे भी हो ? उत्तर - क्योकि मुहावरे के अन्दर ऐसे स्थानो पर दोनो का इस्तेमाल देखते है; इसलिये इनमें विरोध नही; जो दोनो न हो सके। जैसे कोई कहता है कि वृक्ष की शाखा पर बाज बैटा है दूसरे स्थान पर यह कहे कि वृक्ष की दूसरी शिखा पर बाज बैठा है, इनमें से विरोध नही केवल मुहावरे का भेद है; निदान दोनो अवस्थाओ में अर्थ एक ही निकलता है। प्रश्न - द्यौलोक किसे कहते है ? उत्तर - सूर्य से उपर जो आकाश है; उसको द्यौलोक कहते है। प्रश्न - जब ब्रह्य के एक पाद में यब भूत आ गये तो सूर्य से उपर का आकाश भी उसमें आ गया क्योकि अपंचभूतो में है, तो भुतो से पृथक द्यौलोक कोन सा रहा ? उत्तर - बहुधा विद्वानो के विचार में अनुभवजन्य और स्मृभवजन्य दो प्रकार का ज्ञान होता है। वह अनुभवजन्य भुतो का ज्ञान उससे परे स्मृति को द्यौलोक से उत्प्रुक्षित करते है ब्रह्य को चार पाद में सत् चितृ आनन्द और स्वतन्त्रता -इनमे सत तो प्रकृति पाया जाने से एक पाद सब भूतो परमाणुओ में पाया जाता है परन्तु चेतनता आनन्द और स्वतन्त्रता अनुभव में इन्द्रियों से ज्ञात नही होती। वह बुद्धि से जानी जाती है यह बुद्धि द्यौलोक है। प्रश्न - यह किस प्रकार सत्य हो सकता है ? क्योकि वहाँ द्यौलोक बतलाया गया है। उत्तर - सम्भव तो यह है; क्योकि लोक लिस धतु से बना है, उसका अर्थ दर्शन है और दिव कहते है प्रकाशशील अर्थात प्रकाशित वस्तुओं प्रकाश स्वरूप् वस्तुओ का जहाँ दर्शन हो, उसका नाम ? लोक है, क्योकि बुद्धि में जीव ब्रह्य का दर्शन होता है। इस कारण उसे द्यौलोक कहते है। प्रश्न - ऐसा कोई प्रमाण नही मिलता , जहाँ बुद्धि से जीव और ब्रह्य का ज्ञान होता है ? उत्तर - केनउपनिषद ने बताया गया है कि उसी आकाश में एक स्त्री आई और उसने बताया की यह ब्रह्य है। वहाँ स्त्री से अर्थ बुद्धि ही है। दूसरे और भी क्षुति कहती है कि वह सूक्ष्म बुद्धि से जाना जाता है इस कारण बुद्धि को द्यौलोक कहना सत्य नही; इस कारण ज्योति शब्द से भी ब्रह्य ही लेना चाहिये। प्रश्न – कौशीतकी ब्राह्यण में इन्द्र और वृत्रकी कथा में लिखा है कि उसने कहा-मैं प्रज्ञातीत्मा प्राण हूँ, मैं आयु हूँ, तू मेरी उपासना कर । क्या उस जगह प्राण शब्द ब्रह्या के लिये, जीव के लिये व स्वासों के लिये है ?

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