सूत्र :भूतादिपादव्यपदेशोपपत्तेश् चैवम् 1/1/26
सूत्र संख्या :26
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : भावार्थ - गायत्री मंत्र में पाद होने से पृथ्वी आदि भुतों को भी ब्रह्य मानना पछ़ेगा; इस कारण यहाँ बजाय गायत्री छंद के ब्रह्य मानना उचित नही; क्योकि इस प्रकार प्रत्येक वस्तु में ब्रह्य हो जाने से भेद नही रहेगा; परन्तु ब्रह्य को परमात्मा उच्चारण से प्रत्येक वस्तु में उसकी स्थिति है; इस कारण उपचार से प्रत्येक वस्तु को ब्रह्य कह सकते है। जैसा की उपनिषत्कार ने लिखा है कि यह सर्व जगत् ब्रह्य है- इसमें उत्पन्न होने और उसमें लय होने से।
व्याख्या :
प्रश्न - क्या ब्रह्य सबका कारण होने से जगत ब्रह्य हो सकता है ?
उत्तर - जब वेद-मंत्र यह लिखता है कि ब्रह्य एक पाद सब जगत् के भुत अर्थात परमाणु हैं और तीन परद अमृत और जगत से परे हैं, तो इस कारण ब्रह्य कहें, तो कोई दोष नही ; इसलिये पूर्व वाक्य में ब्रह्य को गायत्री शब्द के कथन से कोई दोष नही। इसका न्याय सुत्र कार करते हैं।