सूत्र :अत एव प्राणः 1/1/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रदार्थ- (अतः) इसलिये (एव) भी (प्राणाः) प्राण ब्रह्य का नाम है।
व्याख्या :
भावार्थ- सृष्टि करता होना ब्रह्य का लिंग है; इस कारण जहाँ प्राणो को सष्टि करता बताया है वहाँ प्राणों से अर्थ भी ब्रह्य का है।
प्रश्न- ब्रह्य का नाम प्राण किस प्रकार का हो सकता है ? हमने कंही सुना भी नहीं।
उत्तर - उपनिषद मे कहा है कि वह ब्रह्य प्राणों का भी प्राण ह; क्योकि जिस प्रकार प्राण जीवों की आयु का कारण है; उसी प्रकार ब्रह्य प्राणों की स्थिति का कारण है; क्योकि अग्नि और वायु के परताणुओं के संयोग से प्राण बनता है। यदि ब्रह्य न हो, तो यह संयोग ही न रहे। अतः प्राण भी ब्रह्य का नाम है; क्योकि वह संसार की आयु का उच्च कारण है।
प्रश्न - प्राण जबकि साधारण तथा आयु का कारण है, और जिसको सब मनुष्य तानते हैं, तो फिर किस प्रकार प्राण ब्रह्य का नाम स्वीकृत किया जाये?
उत्तर - बहुत स्थानों पर श्रुतियों ने प्राण को ब्रह्य के लक्षण के अनुसार प्रयुक्त किया। जैसा कि लिखा है कि कुल प्राणी मर कर प्राणों में ही सम्मिलित होते है प्राणों से स्थित रहते हैं, प्राणो से उत्पन्न होते हैं। अवभूत शब्द अग्न्यादि का नाम है, किन्तु प्राण अग्नि और वायु से उत्पन्न होता हैं, इसलिये जहाँ जीवधारियों के कारण प्राण कहला सकते है, वहा अग्नि आदि के प्राण कार्य हैं। इसलिये सब भूतों के उत्पन्न करने वाले प्राण नही हो सकते; क्योकि कोई कार्य न तो अपने कारण की उत्पत्ति का कारण होता है और न नाश ही का कारण । जबकि श्रुति ने प्राण को सब भुतों की उत्पत्ति और नाश का कारण बताया है। इसलिये वहाँ प्राण का अर्थ ब्रह्य ही लेना होगा।
प्रश्न - क्या सब इन्द्रियों ही हरकतों का कारण प्राण नही ? प्राण ही से सब इन्द्रियाँ क्रम करती है; पुनः भूत से अर्थ इन्द्रियाँ लेकर प्राण ही मानने चाहिये।
उत्तर - इन्द्रियाँ निश्चय प्राणो का कार्य अर्थात् प्राणो के सहारे चलनेवाली हो सकती है; परन्तु भुत इन्द्रियों के कारण हैं। और प्राणो के भी कारण है इसलिये भुतो की उत्पत्ति और नाश का कारण प्राण नही हो सकते; निदान प्राण से अर्थ ब्रह्य ही लेना उचित है; क्योकि जहा एक शब्द अनेक अथो में आता है वहा प्रकरण के अनुसार अर्थ लिया जाता है अब प्राण के अर्थ यह है- प्रथम प्राण वायु अग्नि से संबंधित हुए और दूसरे ब्रह्य; परन्तु विषय सब भुतो ही उत्पत्ति के कारण का है और प्राण भुतो से उत्पन्न हुए है, जो किसी दशा में भुतो के कारण नही हो सकते । निदान प्राणो का वह अर्थ जिससे भुतो का कारण हो, लेना चाहिये और वह अर्थ और वह केवल ब्रह्य ही है।
प्रश्न - क्या और किसी वस्तु का अर्थ भी उपनिषदों से अस प्रकार लिया गया है?