DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :अन्तस् तद्धर्मोपदेशात् 1/1/20
सूत्र संख्या :20

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ – अन्दर है वेद के उपदेश से व उसका धर्म बतलाया जाने से ।

व्याख्या :
भावार्थ- ब्रह्म जीव के अंदर है, क्योंकि श्रुति उसका उपदेश करती है कि जो आत्मा में रहता है और जीवात्मा से पृथक् है, जिसको यह जीवात्मा नहीं जानता, जिसका यह जीवात्मा से शरीर है । जिस प्रकार शरीर के भीतर जीव रहता है, जो जीवात्मा से पृथक् अथवा उसके कर्मों का साक्षी अर्थात् देखनेवाला है, वह आत्मा तेरा अन्तर्यामी है । उस श्रुति तो देखकर किसी मूर्ख का ही यह शंका रह सकती है कि जीव ब्रहा का भेद ही प्रकट होता है और भी अनेक श्रुतियों में प्रकट किया गया है कि जीव आत्मा के अन्तःकरण में परमात्मा है । जिस प्रकार चक्षु में सुर्मा होता है, परन्तु दृष्टि नहीं आता, ऐसे ही जीव के भीतर ब्रह्या है, परन्तु जीव उसको नहीं जानता । प्रश्न- अन्य मनुष्य तो इस स्थान पर छान्दोग्य उपनिषद् की श्रुतियाँ प्रस्तुत करते हैं, तुमने यह शतपथ ब्राह्याण की श्रुति प्रस्तुत ही ? उत्तर- यह श्रुति किसी भाँति अद्वैतवाद में नहीं लग सकती इस कारण अद्वैतवादियों ने उस श्रुति को प्रस्तुत की, जिनको वह अद्वैतवाद की राह में रूकावट नहीं समझते थे, परन्तु यहाँ पर जीव अथवा ब्रह्या का भेद दिखला रहे हैं और सूत्रकार इस श्रुति को लक्ष्य करके लिखते हैं, यहाँ तक कि उस श्रुति को अद्वैतवाद के मत में रूकावट समझकर पृथक् कर दिया है । प्रश्न- क्या यह श्रुति वृहदारण्यकोपनिषद में नहीं है ? उत्तर- यह श्रुति शतपथ ब्राह्यण के चौदहवें काण्ड में है । वृहदारण्यक में वहाँ की सब श्रुतियाँ हैं, केवल उस श्रुति के पृथक् कर दिया है । प्रश्न- क्या शंकराचार्य ने जो अद्वैतवादियों में शिरोमणि ते, उस श्रुति को पृथक् कर दिया है ? उत्तर- शंकराचार्य जैसे विरक्त धर्मात्मा का यह कर्म नहीं वरन् शंकराचार्य की पुस्तकों में स्पष्टतया द्वैतवाद भी झलकता है; परन्तु बाद के पण्डितों ने जिन्होने उपनिषदों को छापा, उस श्रुति को पृथक् कर दिया। प्रश्न-क्या प्रमाण दें कि श्रुति शंकराचार्य ने पृथक् नहीं की; किन्तु उनके पीछेवालों ने पृथक् ही ? उत्तर-शंकराचार्य के भाष्य पर टीका करते हुए भामती के कर्ता वाचस्पति मिश्र ने इस श्रुति को लिखा है, इस कारण उसके पीछे अलग हुइ; पूर्व नहीं। प्रश्न-क्या जीव से ब्रह्म पृथक् है ? इस समय तो मनुष्य जीव और ब्रह्म को एक जानते हैं।

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: