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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :भेदव्यपदेशाच् च 1/1/17
सूत्र संख्या :17

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (भेद) भेद के (व्यपदेशात्) उपदेश होने से (च) भी।

व्याख्या :
भावार्थ- श्रुतियों और वेद-मंत्रों ने जीव-ब्रह्म का भेद बतलाया है; क्योंकि जीव भीतरी ज्ञान और वाह्म ज्ञान दो प्रकार के ज्ञान रखता है और ब्रह्म में केवल भीतरी ज्ञान है। दूसरे ब्रह्म निष्काम स्वाभाविक कत्र्ता (फायल-बिलखास्ता) और जीव सकामकर्ता (फायल-बिल इरादा) इच्छा से कत्र्ता है। ब्रह्म के सब कर्म सदैव एक से होते हैं; जीव के कर्म अनियमित व सापेक्ष हैं। प्रश्न-क्या जीव नियमपूर्वक कर्म नहीं कर सकता ? उत्तर-नियमपूर्वक कर्म कर सकता है; परन्तु उसके अल्प शक्तिवान् और अल्पज्ञ होने से उसके नियम एक से नहीं रह सकते। जीवों ने घड़ी बनाई। दस घड़ियाँ हैं, इसमें प्रत्येक का समय न्यून व अधिक हो सकता है। रेलवालों ने समय नियत किया; बहुधा गाड़ी लेट हो जाती है; आपस में टकरा जाती है। मनुष्य के नियम अटल नहीं, परमात्मा के नियम अटल हैं। परमात्मा ने सूर्य-चन्द्रमा की चाल जिस नियम पर स्थिर की है; सदैव उस पर बँधी हुई है; इसी कारण ज्योतिष द्वारा दस सहस्त्र वर्ष में होनेवाले ग्रहण का पता लगा सकते हैं; सतः जीव-ब्रह्म का भेद वेद-शास्त्र और युक्तियों से सिद्ध होता है। प्रश्न-क्या जिन मनुष्यों ने जीव-ब्रह्म को अभेद बतलाया है, वह भूल करते हैं ? उत्तर-वास्तव में जो-ब्रह्म का अभेद बतलानेवालों का तात्पर्य यह था कि जीव से ब्रह्म दूर नहीं; जैसा कि मनुष्य चतुर्थ आकाश, सप्तम आकाश, वैंकुण्ठ, क्षीरसागर, गोलोक आदि में ब्रह्म को मानते हैं और अपने से दूर और सान्त जानकर ब्रह्म से जीव तक खबर लाने के कारण दूत, बरजख, और फरिश्तों आदि की कल्पना करते हैं। इसका खंडन करना था; परन्तु साधरण और स्वार्थियों ने उसको उलटा समझ लिया। अभेद का अर्थ था दूरी का अभाव कि उसके जानने के साधनों में वियोग का न होना व उनका ज्ञान एक साथ होना; क्योंकि जीव के अंदर ब्रह्म के होने से जीव से ब्रह्म दूर नहीं। शुद्ध मन ही से जीव और ब्रह्म का ज्ञान होता है; इस कारण दोनों के जानने का साधन एक है। जिस प्रकार चक्षु अथवा चक्षु का सुर्मा दोनों दर्पण द्वारा देखे जाते हैं, इनके जानने के साधनों में भेद नहीं। तीसरे चक्षु अथवा चक्षु के सुर्मा का ज्ञान भी एक साथ होता है। इन कारणों से जीव-ब्रह्म अभेद बतलाया है। दोनों के स्वरूप् में भेद तो सब श्रुतियाँ और युक्तियाँ वर्णन करती हैं।