सूत्र :मान्त्रवर्णिकमेव च गीयते 1/1/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (मान्त्रवर्णकम्) वेद-मन्त्रों में (एव) ही (गीयते च) गान किया गया है।
व्याख्या :
भावार्थ- वेद-मंत्रों में भी बतलाया गया है कि ब्रह्म विशेष आनन्द देनेवाला है जैसे- बतलाया है कि जो ब्रह्म को जानता है, वह ब्रह्मनन्द को प्राप्त होता है। ब्रह्म सच्चिदानन्द है। इस प्रकार अधिक स्थानों पर ब्रह्म को परमानन्दवाला बतलाया गया है। इस कारण सब उपनिषद् ब्राह्मणों और वेदों में कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ जीव को आनन्दमय बतलाया गया हो; किन्तु ब्रह्म ही आनन्दस्वरूप है। जीव उससे आनन्द प्राप्त करता है। जैसे-अग्नि में स्वरूप से उष्णता है; हम उससे उष्णता प्राप्त करते हैं।
प्रश्न- ब्रह्म को आनन्द-स्वरूप होने में जितने वाक्य उपस्थित किये गए हैं, वह सब ब्राहाणा ग्रंथों के है, सूत्र में इनको मंत्र क्यों लिखा ॽ
प्रश्न- क्योंकि ब्राह्मण वेदों के व्याख्यान् हैं यदि व्याख्यान मूल के विपरीत न हो, तो उसमें अंतर नहीं समझा जाता; इस कारण मंत्र के स्थान में ब्राह्मण को उपमा दी। जिस अंश में ब्राह्मण वेद के विरूद्ध होगा, वहाँ उसको वेद से पृथक् समझ लिया जायेगा। यहँ तक सूत्रकार ने ब्रह्म सच्चिदानन्द सिद्ध किया, अब विपक्षी शंका करता है।