सूत्र :श्रुतत्वाच् च 1/1/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- जितनी श्रुतियाँ जगत्कर्ता का विचार करती हैं सब-की-सब ब्रह्म को जगत् का कर्ता बतलाती हैं। कोई श्रुति प्रकृति को जगत् का कर्ता नहीं बतलाती। जैसे-वेद ने बतलाया जो कुछ जगत् में विद्यमान होता है, वह सब पुरूष ही के कारण से होगा। यद्यपि प्रकृति उपादान कारण है; परन्तु वह स्वयं परतंत्र होने से कुछ बना नहीं सकती; इस कारण संसार के जितने पदार्थ हैं, वह चेतन पुरूष के कारण बनते हैं। सब सृष्टि तो परमात्मा के कारण बनती है और उसमें जो कुछ भिन्न-भिन्न वस्तुयें दृष्टि-गोचर होती हैं, वह जीवात्मा के कर्मों के कारण हैं प्रकृति के उस कर्म को ग्रहण करनेवाली है और प्रकृति के कार्य, मन आदि शक्ति के औजार हैं। सबकी क्रिया का कारण केवल पुरूष अर्थात् परमात्मा और जीवात्मा है। इस कारण दूसरे सूत्र में तो में विवाद किया कि वह ब्रह्म जो जगत् का कर्ता है, वह जड़ प्रकृति व उसका कोई कार्य नहीं। अब सत्-चित् ब्रह्म को सिद्ध करके आनन्द सिद्ध करने के कारण नीचे का सू़त्र लिखते हैं।