DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :विकारशब्दान् नेति चेन् न प्राचुर्यात् 1/1/13
सूत्र संख्या :13

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (विकार शब्दात्) मय शब्द के अर्थ विकार के हैं (इति चेत्) यदि ऐसा नहीं, (न) नहीं (प्राचुय्यत्) अधिक भी है।

व्याख्या :
भावार्थ- ब्रह्म आनन्दमय हैं। यद्यपि मय शब्द के अर्थ विकार के भी हों; परन्तु आनन्दमय कहने से ब्रह्म विकारवाला नहीं हो काता; क्योंकि विकार छह हैं, जो ब्रह्म में नहीं घट सकते। इस कारण मय शब्द का अर्थ प्राचुर्य्य अर्थात् अधिकता है। इसलिये आनन्दमय का अर्थ यह है कि ब्रह्म में अति आनन्द है। प्रश्न-विकार जो छह प्रकार के बतलाय हैं, वह कौन-से हैं ? उत्तर-उत्पन्न होना, बढ़ना, एक सीमा तक बढ़कर ठहर जाना, आकृतियाँ बदलना, घटना और नाश हो जाना- ये छह विकार हैं। जो वस्तु उत्पन्न होती है, उसमें ही विकार होता है। ब्रह्म की उत्पत्ति नहीं; इसलिये ब्रह्म को आनन्दमय कहने से इस स्थान में मय का अर्थ विकार नहीं होगा; किन्तु अधिकता लेनी होगी। प्रश्न-यदि बह्म में विकार मान लो, तो क्या दोष होगा ? उत्तर- इस दशा में ब्रह्म का कोई कारण स्वीकार करना पड़ेगा; क्योंकि कारण के बिना विकार नहीं हो सकता। जितने नित्य पदार्थ हैं, उनमें विकार नहीं होता; इस कारण ब्रह्म के अनादि अथवा जगत् का कर्ता होने से मय का अर्थ अधिकता लेना ही उचित है। इसपर युक्ति देते हैं कि आनन्द की अधिकता ही क्यों ली जावे, विकार क्यों न लिया जावे।

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