सूत्र :आनन्दमयोऽभ्यासात् 1/1/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (आनन्दमयः) यह आनन्दस्वरूप् है (अभ्यासात्) क्योंकि सब श्रुतियाँ उसको आनन्दस्वरूप् बतलाती हैं।
व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि सब श्रुतियाँ ब्रह्म को आनन्द-स्वरूप् बताती हैं इस कारण ब्रह्म आनन्द स्वरूप है; यहाँ तक कि 11 सूत्रों से ब्रह्म सच्चिदानन्द सिद्ध किया है।
प्रश्न- तैत्तिरीयोपनिषद् में पाँच कोष लिखे हैं-अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय। क्या पाँचवा कोष जो आनन्दमय कहाता है, ब्रह्म से पृथक कोई दूसरा चेतन है ?
उत्तर- तैत्तिरीयोपनिषद् में उस आनन्दमय कोष का शरीर आदि बतलाया है और ब्रह्म के सबसे बड़ा होने से उसका शरीर हो नहीं सकता; क्योंकि ब्रह्म शरीर ब्रह्म से बड़ा होगा, जिसमें ब्रह्म से बड़ा कोई नहीं, जो ब्रह्म का शरीर कहला सके, इसलिये यहाँ आनन्दमय कोष से जीवात्मा ही का ग्रहण करना उचित है।
प्रश्न- यदि माया को ब्रह्म का शरीर मान लें, तो क्या हानि होगी ?
उत्तर- जिसके शरीर होता है वह सुख-दुःख के भोग और इन्द्रियों से रहित नहीं हो सकता, क्योंकि शरीर पर भोग का स्थान होता है; जिसमें भोग के साधन इन्द्रियाँ कर्म करती हैं; जिससे आत्मा को सुखी-दुःखी होने का ज्ञान उत्पन्न होता है। ब्रह्मा भोक्ता नहीं, इसलिये वह शरीर से रहित है; अतः यहाँ तो आनन्दमय से अर्थ जीवात्मा का है; परन्तु और स्थानों में ब्रह्म का संग आनन्द का संबंध होने से ब्रह्म सच्चिदानन्द ही सिद्ध हाता है।
प्रश्न-ब्रह्म को आनन्द कहने से विकार वाला हो जावेगा, क्योंकि भय शब्द विकार के अर्थ में आता है।