सूत्र :कृत्स्नप्रसक्तिर् निरवयवत्वशब्दकोपो वा 2/1/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (कृत्स्न प्रसक्तिः) सारे ब्रह्मा को को कार्यरूप अवस्था को प्राप्त होती है (निरवयवत्व) परमाणुओं से रहित होने के कारण (शब्द कोपः) श्रुतियों का व्यर्थ अनर्थ होना (वा) या।
व्याख्या :
अर्थ- यदि ब्रह्मा ससे जगत् की उत्पत्ति मानी जाये, तो तो सब का सब ब्रह्मा परिणामी (मुत्रौयर) अर्थात् परिवत्तेनशील हो जायेगा; क्योंकि ब्रह्मा संयुक्त (मुरककब) अर्थात् अवयवी तो है नही कि उसका कोई अवयव तो परिणामी अर्थात् परिवत्तेनशील (बदलनेवाला) और कोई अपरिणामी अर्थात् अपरिवर्तनशील (न बदलनेवाला) रहे। ब्रह्मा परिवर्तनशील होगा, तो जो श्रुतियाँ ब्रह्मा को अनादि अजन्मा बताती हैं, यदि ब्रह्मा जगत् बन गया है, यह पक्ष किसी प्रकार छीक नहीं हो सकता।