सूत्र :विकरणत्वान् नेति चेत् तद् उक्तम् 2/1/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (विकरणत्वात्) अन्तःकरण और बाहर के करणों से (साधनों) से रहित होने के कारण (न) नहीं (इति) यह (चेत्) यदि ऐसा हो (तत्) उसके सम्बन्ध में (उक्रम्) कहा है।
व्याख्या :
अर्थ- क्योंकि शास्त्र ने यह सिद्ध किया है कि न तो उस परमात्मा के हाथ, पाँव आदि इन्द्रियाँ हैं और नाहीं मन अहंकार आदि अंतःकरण है (मन, चित्त, बुद्धि, अहंकार, अन्तःकरण कहाता है) वह किस प्रकार सर्व-शक्तिमान कहला सकता है। इसके उत्तर में यह सूत्र कहा गया है।
यद्यपि परमात्मा के कोई उपकरण (औजार) नहीं, तथापि सर्व शक्तिमान इसलिये कहा गया है कि उपकरणोंवाला चेतन अल्प शक्तिवाला हो सकता है-जैसे जीव; क्योंकि उपकरण शरीर से बाहर काम के लिये होते हैं, जिसके शरीर से बाहर कोई पदार्थ है, वह समीति (सान्त) (महदमद) है; परन्तु जिस चेतन के उपकरण न हों और वह रचना आदि काम करे, तो अनन्त की अनन्त होती है। यह हम पहले बतला चुके हैं कि इस शास्त्र का अर्थ श्रुति से जान सकते हैं, तर्क से नहीं।
प्रश्न- जबकि अध्यात्म विद्यावाले और ब्रह्मा (बाहरी) आभ्यन्तर (भीतरी) साधन (औजार) रखनेवाले सर्व शक्तिमान नहीं हो सकते, तो जिस ब्रह्मा को श्रुति ने दूसरों को खण्डन करते हुए बतलाया है कि उसके कोई भी कारण नहीं, जिसको ‘‘यह ब्रह्मा है’’ ऐसा कहकर नहीं बतलाया है तो वह सर्व शक्तिमान कैसे हो सकता है?
उत्तर- यह कोई निय नहीं कि जो शक्ति एक में न हो, वह दूसरे में भी न हो सके, यद्यपि देवता साधनों को रखते हुए सर्व शक्तिमान् नहीं; परन्तु ब्रह्मा को श्रुति ने इस भाँति बतलाया है। ‘‘उसके पग नहीं; परन्तु वेगवान् आगे रहता है, उसके हाथ नहीं; परन्तु सबको देखता है, उसके कान नहीं; परन्तु सबसे वाक्य सुनता है, वह सब जानने योग्य पदार्थों को जानता है, उसका जाननेवाला कोई नहीं वह सब जगत् का कत्र्ता ब्रह्मा है। इससे साधनों (इन्द्रियादि करणों) से शून्य ब्रह्मा को सर्व-शक्तिमान् बतलाया है।