सूत्र :उपसंहारदर्शनान् नेति चेन् न क्षीरवद् धि 2/1/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (उपसंहार दर्शनात्) परिणाम में देखने से (न) नहीं (इति) यह (चेत्) यदि स्वीकार किया जाय (न) उचित नहीं (क्षीरवत्) दूध के समान (हि) निश्चय।
व्याख्या :
अर्थ- यह जो कहा है कि एक ही चेतन ब्रह्मा जगत् का कारण है, कोई दूसरा पदार्थ कारण नहीं कहा सकतस। पहरणाम देखने से उक्त बात सिद्ध नहीं होती। इससे संसार में कुम्हार आदि, घड़े और घड़े आदि के बनानेवाली मिट्टी, डंडा, चाक आदि बहुत-सी वस्तुओं को देखकर यह परिणाम निकलता है कि-ब्रह्मा, बिना किसी साधन के किस प्रकार जगत् उत्पन्न करेगा। इसलिये ब्रह्मा जगत् का कारण नहीं।
इसका उत्तर- यह शंका ठीक नहीं, जिस प्रकार दूध बिना किसी सहायता के दही बन जाती है; क्योंकि उसके स्वभाव में यह गुण है, ऐसे ही ब्रह्मा में यह विशेषता है कि वह बिना सहायता के जगत् रचे।
प्रश्न- दूध को दही बनाने के लिये अग्नि आदि साधनों की आवश्यकता है, बिना साधनों के दही नहीं बन सकती। अतः यह दृष्टान्त सिद्धान्त का समर्थन नहीं करता; किन्तु उसे गिराता है।
उत्तर- यह ठीक नही, दूध स्वयं ही तिनी गर्मी की आवश्यकता दही बनाने के लिये अपेक्षा करता है, उतनी ही ग्रहण करता है। यदि उसमें दही बनाने की शक्ति न हो तो गर्मी आदि देने दही बन सकता कोई उसे अलपूर्वक दही बना सकता। वायु और आकाश को गरम करके दही नहीं बनाया जा सकता। साधन सामाग्री तो उसकी भीतरी शक्ति को सहायता देकर और पूरा करता है; परन्तु ब्रह्मा स्वयं ही पूण है। उसको काई दूसरा सर्वज्ञ अनानेवाला नहीं। अतः केवल ब्रह्मा से ही जगत् की उत्पत्ति हुई है।
प्रश्न- ब्रह्मा बिना यंत्रों के कैसे कार्य कर लेता है?
उत्तर- कर्म दो प्रकार से होता है, एक अंदर से, दूसरा बाहर से। बाहर का कार्य बिना किसी यन्त्र के नहीं हो सकता। भीतरीकार्य व्याप्कता से हो सकता हैं ब्रह्मा सब में व्यापक है। इसलिये उससे कोई चीज बाहर नहीं, भीतरी कार्य के लिये यन्त्रों की आवश्यकता नहीं।