सूत्र :न प्रयोजनवत्त्वात् 2/1/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (न) ब्रह्मा जगत् का कारण नहीं (प्रयोजनत्वात्) क्योंकि चेतन प्रयोजन को लेकर ही कर्म को करता है।
व्याख्या :
अर्थ- फिर ब्रह्मा जगत् का कारण है, इस पर शंका करते हैं। वह चेतन परमात्मा निष्प्रयोजन इस जगत् को क्यों रचने लगा? जबकि श्रृति भी यह कहती है-मैत्रीय सबकी इच्छा से सब प्रिय नहीं होते; किन्तु आत्मा के स्वार्थ से सब प्रिय है। (न वारे सर्वस्य कामाय सर्व प्रियं भवति आत्मनस्तु कामाय सर्व र्पियं भवति। वृ.2।4।5) परमात्मा इस महान् कार्य को जो ब्रह्मा के नाम से जगत् कहाता हैं यदि परमात्मा का इस जगत् बनाना किसी अपने स्वार्थ के लिये हो, तो परमात्मा में कोई त्ऱुटि व न्यूनता अवश्य मानी जायगी; क्योंकि इच्छा हितकारी और अप्राप्त वस्तु की होती है और हितकारी उसे कहते हैं, जो त्रुटि को पूर्ण और न्यूनता को दूर करे। यदि ईश्वर ने बिना किसी लाभ के जगत् को रचा है, तो उसका काम व्यर्थ हुआ और जो व्यर्थ काम करता है, वह सिड़ील (पागल) कहाता है। इसलिये बिना अर्थ काम करने से परमात्मा पर यह आक्षेप आयेगा और यह उसकी सर्वज्ञता पर दोष लायेगा। अतः परमात्मा से जगत् की उत्पत्ति स्वीकार करना उचित नही।