सूत्र :अश्मादिवच् च तदनुपपत्तिः 2/1/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अस्मादिवत्) पत्थर आदि के समान (च) और (तत्) उस ब्रह्मा के उपादान कारण पर जो शंकायें हैं उनकी (अनुप पत्तिः) नहीं हो सकती।
व्याख्या :
अर्थ- जैसे जगत् में पृथ्वी से साधारण ढंग पर बने हुए पत्थरों में कोई मणि कहाते काहई वज्र, कोई हीरा, कोई लाल और कोई नीलम। कोई उत्तम तेज रखते हैं, कोई मध्यम श्रेणी के हैं, कोई फेंकन योग्य पत्थर हैं इस प्रकार विचित्र उत्पत्ति देखी जाती है। जैसे एक ही भूमि पर बोये बीजों को नाना प्रकार के फल-फूल पत्ते लगड़ी और अनेक भाँति के रस और गंधे पाई जाती हैं और चंदन आदि भिन्न प्रकार के वृक्ष उत्पन्न होते हैं। जैसे एक ही प्रकार के भोजन से भिन्न-भिन्न रंग के काले बाल, नाखून (श्वेत) आदि पैदा होते है। इसी प्रकार ही ब्रह्मा से जीव प्राज्ञ आदि विचित्र कार्य उत्पन्न होते हैं। अतः यह शंका नही ठहर सकती कि- ‘‘क्योंकि ब्रह्मा से जगत् अनेक प्रकार का बना हैं। अतः वह ब्रह्मा से उत्पन्न नहीं हुआ।’’ जिसको श्रुति ने भी उसके विरूद्ध कहा है और विकार को केवल कहने तक ही शांत कर दिया है। वास्तव में नहीं माना।