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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :अधिकं तु भेदनिर्देशात् 2/1/21
सूत्र संख्या :21

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (अधिकम्) ब्रह्मा जीव से अधिक है (तु) यह शब्द पक्ष को भिन्न करने के लिये है (भेद निर्देशात्) श्रुतियों ने जीव और ब्रह्मा का भेद बतलाया है।

व्याख्या :
अर्थ- हम जिस सर्व-शक्तिमान् नित्य शुद्ध-बुद्ध और सर्वज्ञ ईश्वर से सृष्टि रचना बतलाते हैं, वह शरीर में आनेवाले जीव से महान् है और उससे पृथक् है और उस ब्रह्मा में पूर्वोक्त दोष नहीं आते; क्योंकि अपनी इच्छा से कर्म करने वाला जीव है। ब्रह्मा के लिये कोई वस्तु हित नहीं, जिसकी इच्छा से वह कर्म करे, और नाहीं कोई अहित अर्थात् हानिकारक है। जिसे दूर करने का कर्म करे; क्योंकि वह तो स्वभाव से ही मुक्त है। उसका ज्ञान कहीं रूकता नहीं, कोई वस्तु ऐसी नहीं, जिसे ब्रह्मा न जानता हो न उसकी शक्ति कहीं रूक सकती है, कोई काम ऐसा नहीं, जिसे वह न कर सकता हो, वह अपने कर्म बिना दूसरे की सहायता के करता है; क्योंकि वह सर्वज्ञ और सर्व-शक्तिमान् है, जीवात्मा ऐसा नहीं। अतः जिसमें यह दोष आते हैं, उसे हम सृष्टिकर्ता नहीं कह सकते; क्योंकि श्रुति ने यह भेद बतलाया है। याज्ञवल्क्य का कथन है कि-1 प्रिय मैत्रयी। यह आत्मा देखने योग्य, श्रवण योग्य, मनन करने अर्थात् विचारने योग्य और हृदय में धारण करने योग्य है, वह खोज करने योग्य और भली प्रकार से जानने योग्य है। छान्दोग्य उपनिषद् में लेख है-2 ‘‘उस समय प्रिय पुत्र, यह जीवात्मा सत् परमात्मा को प्राप्त करता है।’’ इस प्रकार के अनेक भेद श्रुति ने बताये हैं, जिससे जीव ब्रह्मा का भेद सिद्ध होता है, जब जीव ब्रह्मा का भेद सिद्ध होगा, तो जीव से ब्रह्मा बड़ा है। प्रश्न- कोई श्रुति अभेद को कहती है। अतः श्रुतियों में परस्पर विरोध हुआ। जिससे उनके प्राणणित होने में दोष आता है। उत्तर- इसमें कोई दोष नहीं, जैसे आकाश में घटाकाश, मठाकाशदोनों बातें संभव हैं। जब समाधि की अवस्था में आत्मा अन्दर देखता है, तो किसी दूसरे पदार्थ की मान न होने से अद्वैत ज्ञान होता है; क्योंकि उस समय नैमित्तिक (ईश्वरीय) आनन्द के होने से जीव भी सच्चिदानन्द होता है और जाग्रत अवस्था में भेद भी होता हैं अतः भिन्न-भिन्न दशाओं का वर्णन करने से श्रुतियों में विरोध नहीं। प्रश्न- भेद और अभेद का इतना झगड़ा जिस पर सैकड़ों ग्रंथ लिखे गये, कैसे लोप हो सकता है? उत्तर- निःसन्देह इस विषय पर बहुत ग्रंथ लिखे गये हैं; परंतु कौन-सा अद्वैतवादी है, जो व्यवहार काल में जीव ब्रह्मा का भेद न मानता हो। यदि अद्वैतवादियों का यह सिद्धान्त होता, तो शंकराचार्यादि अद्वैतवादियों के गुरू अपने गुरू को नमस्कार न करते। (मंगलाचरण में) गुरू को नमस्कार करने से सिद्ध है कि कोई अद्वैतवादी व्यवहार में अद्वैत नहीं मानता। और नाहीं कोई निद्रा की अवस्था में अवयव। जो जिसको सुषुप्ति में अद्वैत ज्ञान होता है। विद्वानों में अवयव। जो जिसको सुषुप्ति में अद्वैत ज्ञान होता है। विद्वानों ने इसकी तत्त्व ज्ञान उत्पन्न करने के लिये प्रश्नोत्तर के ढंग पर समझाने को रखा है। मूर्ख लोग उसके तात्पर्य को न समझ कर ब्रह्मा बन बैठे हैं। प्रश्न- जब जीव ब्रह्मा का भेद है, तो सारा देश क्यों गड़बड़ में है, और स्त्रियाँ तक क्यों अपने को ब्रह्मा कह रही हैं? उत्तर- सच्चाई को न समझने से और स्वार्थ के कारण।