सूत्र :पटवच् च 2/1/18
सूत्र संख्या :18
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (पटपत्) वस्त्र की भाँति (च) और।
व्याख्या :
अर्थ- जैसे लिपटा हुआ वस्त्र, देखने से यह नहीं ज्ञात होता कि यह कौन वस्तु है? चादर है, अथवा कोट है वा कोई चीज है और जब वही फैला दिया जाता है कि जो लिपटा हुआ था, तब प्रगट हो जाता है कि कौन-सा वस्त्र है। ऐसा जानकर भी उसकी विशेष दशा का ज्ञान नहीं होता; परंतु फैलाने से लंबाई चौड़ाई ज्ञात होती है। उस समय यही नहीं कहा जा सकता हक यह फैला वस्त्र उस लिपटे हुए वस्त्र से भिन्न है। ऐसे ही सूत होने की अवस्था में वस्त्र आदि कार्य स्पष्ट विद्यमान नहीं होते, परन्तु जुलाहे के यंत्रों की क्रिया से प्रकट हो जाते हैं, इस कारण वस्त्र के सिकुड़ने और फैलने के समान कारण से कार्य पृथक् नहीं।