सूत्र :भावे चोपलब्धेः 2/1/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (भावे) उपस्थिति में। (च) और (उपलब्धेः) ज्ञान होने से।
व्याख्या :
अर्थ- कारण कि जो सत्ता है, उसके भीतर कार्य की सत्ता का ज्ञान हो सकता है, मिट्टी कारण से घर बनता है। यदि मिट्टी न हो, तो घर किस प्रकार बन सकता है। यदि सूत हो, तो वस्त्र बन सकता है, बिना सूत वस्त्र नहीं बन सकता। यह कारण और कार्य एक दूसरे से भिन्न नहीं; क्योंकि उस दशा में अन्य के होने का ज्ञान देखा नहीं जाता। गौ से घोड़ा भिन्न पदार्थ है, गौ उपस्थिति से घोड़े का होना आवश्यक नहीं और घड़े का ज्ञान कुम्हार की विद्यमानता से उस प्रकार संबंध रखता है; क्योंकि कुमहार घड़े का निमित्त कारण है। और कुम्हार तथा घाट का संबंध भी है; परंतु कुम्हार और घड़ा अंदर जो हैं कुम्हार घड़े का उपादान कारण नहीं।
प्रश्न- निमित्त कारण के भाव से ही कार्य की उपस्थिति नियम पूर्वक देखी जाती है-जैसे अग्नि के नहोने से धुएँ का न होना निश्चित बात है।
उत्तर- बहुध देखा गया है कि आग बुझ गई है और बंद घर में धुआँ मौजूद है इसलिये यह नियम न रहा। यह उत्तर उचित नहीं, क्योंकि कुएँ की यह दशा ब्रद रहने से हुई न कि अग्नि के न होने से, यदि पिता के पिछे भी पुत्र जीवित है। तो यह नहीं कह सकते कि बिना पिता के भी पुत्र हो सकता है। इसलिये कारण और कार्य होने का कारण उस कार्य की सत्ता में अनुराग करनेवाला ज्ञान हमने कारण बतलाया है। क्योंकि घड़ा मिट्टी का है, ऐसा ज्ञान होता है, घड़ा कुम्हार का है, ऐसा विद्यमान होते हैं निमित्त कारण के नहीं। इसलिये उपादान कारण से तो कार्य पृथक् नहीं होता; परंतु निमित्त कारण से ऐसा संबंध नहीं होता। केवल कथन से ही कारण कार्य में एकता नहीं; किंतु प्रत्यक्ष में ज्ञान ही कारण और कार्य एकता नहीं; किंतु प्रत्यक्ष में ज्ञान ही कारण कार्य का एक साथ होता है। जब दूर से घड़े को देखते हैं, तो मिट्टी का साथ ही ज्ञान होता है। जब वस्त्र को देखते, तो सूत के बिना वस्त्र प्रतीत नहीं होती। केवल सूत ही ताना बाना में मौजूद होता है। ताने में बाना और बाने में ताना ही नजर आता है। इस प्रत्यक्ष ज्ञान से सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण यह तीन रूप ही देखते हैं, इनसे आकाश, वायु आदि तन्मात्राओं का अनुमान कर लेना चाहिए; परंतु ब्रह्मा एक अद्वैत में सब प्रमाण है।