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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :न तु दृष्टान्तभावात् 2/1/8
सूत्र संख्या :8

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (न) यह दोष नहीं आ सकते (दृष्टान्ताभावात्) उदाहरण की अवद्यमानता होने से जिस पक्ष के लिये उदाहरण न हों, वह सिद्ध नहीं हो सकता।

व्याख्या :
अर्थ- हमारे पक्ष में कोई दोष नहीं, जो कि कारण में आ सके और कार्य, कारण के गुणों के अनुसार होता है। इस कारण वह दोष कार्य के धर्म से कारण में बतलाया है, वह दोष नहीं। क्योंकि उसमें कोई दृष्टांत नहीं, ऐसा उदाहरण नहीं लिता कि कार्य के दोष से कारण दुषित होता हो; क्योंकि कारण कार्य से सूक्ष्म होता है। स्थूल के गुण सूक्ष्म में आते हों, इसका कोई दृष्टांत नहीं। सदैव सूक्ष्म के गुण स्थूल में आते हैं, स्थूल के सूक्ष्म में नहीं। अतः कारण के गुण तो कार्य में आते हैं; परन्तु कार्य के गुण कारण में नहीं आते। यह बहुत संक्षिप्त में कहा जाता है कि कार्य सृष्टि में अपने धर्म से कारण को प्रकट करने और स्थित के समय तीन अवस्थायों में कार्य के गुण कारण में नहीं आ सकते, यह सब अवस्थाओं में एक है। यदि कारण और कार्य का अभेद ज्ञान होने से यह सब आत्मा है, तो सब श्रुतियाँ ऐसा स्वीकार करती हैं; क्योंकि तीन तीन कालों में कारण से कार्य अभिन्न सुना जाता है-जैसे मदारी सब खेल फैलाता है, स्थित रखता और थैली में बन्द कर लेता है; परन्तु तीनों अवस्थाओं में वह उसके भीती स्वयं नहीं फँसता। उसका यह कारण है कि सब धर्म ब्रह्मा में अविद्या से ओपित अर्थात् कल्पित माने गये हैं। प्रश्न- क्या मदारी की माया, उसके कार्य मदारी से पृथ्क् हैं वा उसके स्वरूप ही हैं? उत्तर- मदारी की माया मदारी से पृथक् ही माननी पड़ेगी ऐसे ही ब्रह्मा निमित्त कारण है, उपादान कारण प्रकृति है, अभिन्न निमित्तोपादान कारण के लिये कोई दृष्टान्त नहीं। प्रश्न- माया सादि है वा अनादि? उत्तर- वेदान्ती लोग माया को अनादि मानते हैं-जैसा कि कहा है। माया अनादि है, सोया हुआ जब होश में आता है, तब अपने को जन्म से रहित सुषुप्ति से रहित स्वप्न से पृथक् और एक जानता है, गौड़1 पादाचार्य ने ऐसा कहा है। प्रश्न- माया व्यापक है वा एक देशी? उत्तर- माया को व्यापक ही स्वीकार करना पड़ेगा; क्योंकि एक देशी होने की अवस्था में वह सब जीवों जीवों के संग सम्बन्ध नहीं रख सकती और न सबका उपादान कारण हो सकती है। प्रश्न- माया कोई वस्तु है वा नहीं? उत्तर- यदि माया कोई वस्तु न हो, तो उससे कोई वस्तु उत्पन्न कैसे हो सकती है? जिस माया का परिणाम यह सब जगत् उसको कोई वस्तु न मानना किसी प्रकार उचित नहीं; क्योंकि इसमें कोई दृष्टान्त नहीं कि शशक (खरगोश) के सींग की भाँति किसी पदार्थ के अभाव से कोई वस्तु उत्पन्न हो गई हो। प्रश्न- जब सब माया कार्य रूप से कारण रूप में लुप्त हो गई, तो फिर किस प्रकार उत्पन्न हो गई; क्योंकि उस समय कोई नियम विद्यमान न रहेगा? उत्तर- इसमें कोई दृष्टान्त विद्यमान नहीं। नित्य देखते हैं कि निद्रा की अवस्था में सब भेद क्षय हो जाते हैं; परन्तु जब जागते हैं, सब भेद प्रकट हो जाते हैं ऐसे ही प्रलय में क्षय होकर सृष्टि में उत्पन्न हो जायँगे। इसलिये श्रुति ने कहा है कि यह सब जगत् सत् को प्राप्त करके नहीं जानता कि मैं सत् को प्राप्त हो गया हूँ। इससे भेडि़या, सिंह आदि जो कुछ होता है, परमात्मा की शक्ति से होता है। प्रश्न- जब महाप्रलय होगी, तो सुक्ष्म शरीर तो कार्य होने से नाश हो जायँगे। उस समय जीवों के कर्मों के संस्कार जो उत्त्पत्ति में अन्तर कराते हैं, नहीं रहेंगे, तो सृष्टि में भेद कैसे रहेगा? उत्तर- कर्मों के संस्कार अग अन्तःकरणों में हैं, महाप्रलय में परमात्मा के ज्ञान में रहेंगे और जब नवीन अन्त-करण बनेंगे, तो परमात्मा वे संस्कार उनमें डाल देंगे; जिससे कर्मों का विभाग बना रहेगा। इस कारण उपनिषद् इस पर और भी युक्ति देते हैं-