DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :एतेन शिष्टापरिग्रहा अपि व्याख्याताः 2/1/11
सूत्र संख्या :11

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (एतेन) इसी से (शिष्टाऽपरिग्रहाः) परमाणवाद आदि जो अन्य श्रेष्ठ विद्वानों ने लिखा है (अपि) भी (व्याख्याताः) प्रकट किये गये अर्थात् उनका खण्डन भी उसी प्रकार से कर लेना चाहिए।

व्याख्या :
अर्थ- जिस प्रकार सबसे अधिक बलवान् पहलवान् के परास्त हो जाने से उसके साथी छोटे-छोटे पहलवान् भी परास्त मान लिये जाते हैं। इस कारण जब प्रकृति का स्वतंत्र कारण होना खण्डित हो गया और ब्रह्मा को अपनी माया से जगत् रचना सिद्ध हो गया, तो शेष परमाणुवाद आदि भी इसी से खण्डित हो गये। प्रश्न- क्या ब्रह्मा को जगत् का उपादान मानना, वेदान्त का सिद्धान्त नहीं? उत्तर- उपादान कारण सदैव दूसरे के आधीन कर्म करता है, ब्रह्मा क्या किसी के आधीन कर्म करता है, जो उपादान कारण कहावे। प्रश्न- अपने ही आधीन (स्वाधीन) कर्म करे, तो भी उपादान कारण हो सकता है। उत्तर- अपने आधीन कर्म करने में आत्मश्रयी दोष है; क्योंकि जिस प्रकार अपने कंधे पर आप नहीं चढ़ सकते, ऐसे ही अपने आधीन आप कोई उपादान कारण नहीं हो सकता और न इसका कोई दृष्टान्त मिलता है। प्रश्न- जब तर्क का प्रथम खण्डन हो चुका, तो ‘‘आत्मश्रयी दोष’’ भी तर्क ही है, अतः इसका खण्डन हो गया उत्तर- निःसन्देह श्रुति के विरूद्ध तर्क नहीं होना चाहिए, तर्क के साथ श्रुति प्रमाण भी सम्मिलित होना चाहिए। एक और श्रुति और तर्क दोनों ही, दूसरी ओर केवल श्रुति हो, जिस ओर दो साक्षी हों, वह ही पक्ष मानना पड़ेगा। वेद के वाक्यों में अमृत और व्याख्यात दोष नहीं हैं, न तो वेद में कोई मंत्र ऐसा है, जिसमें किसी सत्य के विरूद्ध वाक्य का विधान हो, जिससे अमृत दोष आवे और नहीं दो मन्त्रों व प्रकरणों में विरोध है, जो व्याघात दोष आवे। वेद का जो अर्थ वेद में अमृत और व्याघात को उत्पन्न करे, वह वैदिक अर्थ नहीं; अनर्थ है। निदान वेदमंत्रों के अर्थों में जहाँ विरोध पड़ जायगी और छानबीन तर्क बिना हो नहीं सकती। तर्क केवल ईश्वर की सत्ता के विषय में प्रतिष्ठा योग्य नहीं; कि ‘‘ब्रह्मा है’’ इस ज्ञान को तर्क से खण्डित करना बुद्धिमानी नहीं। सृष्टि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में तर्क हो सकता हैं अतः ईश्वर जगत् का निमित्त कारण स्वीकार करना तो उचित है और उसको उपादान कारण मानना भी उचित है; परन्तु उपादान कारण मानना ठीक नहीं। उपादान कारण ईश्वर की माया है, जो अनादि काल से उसके पास विद्यमान है। ब्रह्मा को जगत् के उपादान कारण होने का निराकरण औश्र युक्तियों से करते है।