सूत्र :दृश्यते तु 2/1/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (तु) प्रतिक्षा कसे पृथक् करने के कारण (दृश्यते) देखा जाता है।
व्याख्या :
अर्थ- यह जो कहा जाता है कि जगत् में ब्रह्मा से भिन्न गुण पाये जाते हैं, अर्थत् ब्रह्मा चेतन है, जगत् जड़। ब्रह्मा पवित्र है, जगत् अपिवत्र। इस कारण जगत् केा कारण ब्रह्मा नहीं हो सकता- यह बात सत्य नहीं। क्यांकि चेतन जीवात्मा के कारण से मनुष्य में शरीर में केश, नख, अचेतन उत्पन्न हाते हैं अचेतन गोबर आदि बिच्छू आदि चेतन कारण से अचेतन, अचेतन कारण से चेतन उत्पन्न होता है तो यह युक्ति कि ‘‘चेतन से जंड़ नहीं उत्पन्न हो सकता’’ व्यभिचार दोषचाली रही।
प्रश्न- गोबर आदि के कार्य बिच्छू आदि के शरीर हैं, जो अचेतन हैं, यदि बिच्छू का शरीर चेतन होता, तो कह सकते थे कि जड़से जड़ ही उत्पन्न हुआ है, तो व्यभिचार दोष कहाँ रहा; किन्तु गोबर और बिच्छूं के शरीर में समानता होने से जगत् प्रकृति का विकार है’’ यह सिद्ध होता है।
उत्तर- जिस प्रकार गोबर और बिच्छू में अधिक समान गुण भी हैं और अधिक भिन्न भी। इसी प्रकार आकाश में ब्रह्मा उसका कारण है। जो सत् आदि गुण ब्रह्मा के हैं, यह जगत् में भी पाये जाते हैं इसलिये ब्रह्मा जगत् से सब बातों में विलक्षण (भिन्न) नहीं।
प्रश्न- क्या ब्रह्मा के सम्पूण स्वभाव का बदल जाना ही विलक्षण कहलाता है वा किसी-किसी गुण में (ही) विलक्षण होना अभिप्रेत है, यदि कहो सब स्वभाव के बदल जाने का नाम विलक्षण है। तब कारण कार्य भाव हो नहीं सकता; क्योंकि कारण के कुल कार्य में आ नहीं सकते; क्योंकि प्रकृति विभु है, उसका कोई कार्य विभु नहीं हो सकता। यदि किसी गुण का आना आवश्यक है। तो ईश्वर के ‘‘सत्तादि गुण आकाश आदि में विद्यमान नहीं हैं। इस काण ईश्वर विलक्षण होना नहीं हो सकता, जिससे जगत् का निमित्त ब्रह्मा होने में कोई शंका नहीं।
उत्तर- जिसमें स्वाभाविक गुण प्रकृति के हों और पाकज गुण कत्र्ता के हों, वह उस कारण का कार्य होता है। जड़ के कार्य में जड़ता अवश्य होगी;क्योंकि कारण का स्वाभाविक गुण में आना आवश्यक है और चेतन के कार्य में ज्ञान का अभाव, नियम आदि अवश्य होंगे, निदान जगत् में जड़ता देखी जाती है, जो बतलाती है कि जगत् का उपादान कारण ब्रह्मा नहीं हो सकता और जगत् में प्रत्येक कार्य में प्रत्येग कार्य नियम में बँधा हुआ है, जो बतलाता है कि उसका निमित्त कारण ब्रह्मा है, जब सांख्य उपादान कारण का निरूपण करता है और वेदान्द निमित्त कारण का। इसलिये दोनों शास्त्रों में विरोध नही, एक दूसरे का विषय भिन्न रहे, यदि दोनों एक ही विषय-उपादान कारण वा निमित्त कारण का निरूपण करते, तो झगड़े का स्थान था, जब दोनों का विषय ही अलग है, तो झगड़ा किस बात का। तर्क तो जगत् में नियम देखकर ब्रह्मा को ही निमित्त कारण प्रकट करता है। वास्तव में यह विषय तर्क से घिरा हुआ है; तर्क का भरोसा प्रत्यक्ष पर है, इस विषय को शास्त्रकार और विद्वान् तर्क की सीमा से बाहर समझते हैं, इस कारण वेदानुकूल नियम पूर्वक तर्क से कार्य लेने से तो ज्ञान में सहायता मिलती है और सूखे तर्क से सत्या ज्ञान नहीं होता। जैसे चेतन से अचेतन नहीं उत्पन्न हो सकता। ऐसे ही अचेतन उत्पन्न नहीं हो सकता। दोनों ओर विलक्षण होना पाया जाता है। जब तर्क दोनों ओर समान है, तो श्रुति का विधान चेतन ही निमित्त कारण स्वीकार करना चाहिए।