सूत्र :इतरेषां चानुपलब्धेः 2/1/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (इतरेषाम्) प्रकृति के अतिरिक्त दूसरे पदार्थों के (च) और (अनुपलब्ध्धः) लोक वेद में से न पाया जाने से।
व्याख्या :
अर्थ- प्रकृति का उपादान कारण होना तो वेद से पाया जाता है; परन्तु प्रकृति के अतिरिक्त जो तत्व आदि हैं; वह वेद से प्रकट नहीं होते। ईश्वर का कारण होना वेदों से प्रकट है, निदान वह स्मृति जो ईश्वर को कारण मानती है, अधिक बलवती है। इस कारण वेदान्त का सांख्य के साथ भिन्नता होने पर भी अप्रमाण स्वीकार करना उचित नहीं। अतः दोनों के प्रमाण समझते हुए जो व्याख्या की जाती है, उससे यही परिणाम निकलता है कि ब्रह्माजगत् का स्वतन्त्र कत्र्ता है और और प्रकृति जगत् का उपादान कारण है। जिससे जगत् को रचता है।
प्रश्न- ब्रह्मा प्रकृति से जगत् को रचता है, इसमें कोई प्रमाण नहीं?
उत्तर- श्वेताश्वितर उपनिषद् के मंत्रों से स्पष्ट प्रकट है, कि ब्रह्मा जगत् को प्रकति से बनाता है।
प्रश्न- फिर वेदांती लोग ऐसा क्यों मानते हैं कि जगत् माया का परिणाम चेतन वा विकृत है?
उत्तर- माया नाम ही प्रकृति का है, जैसा कि श्वेताश्वितर उपनिषद् के प्रमाण से प्रकट है, वेदान्त की परिभाषा में उसी का नाम माया है, जिसको सांख्यवाले प्रकृति कहते हैं, उसी का नाम न्याय में परमाणु है, वास्तव में इन शास्त्रों का अर्थ एक ही है, केवल अज्ञानी मनुष्य अविद्या से झगड़ा करते हैं। माया का परिणाम कहने से अर्थ यह है कि प्रकृति का अन्तर है।
प्रश्न- प्रकृति तो सत् है और माया को सत्-असत् से विलक्षण कहा जाता है, जबकि दोनों के लक्षण पृथक रहें, तो एक किस प्रकार हो सकते हैं?
उत्तर- माया को सत् या असत् कहने का यह मतलब है कि वह असत् नहीं; क्योंकि असत् का कारण होता है, माया का कोई उपादान कारण नहीं, जिसका कारण नहीं, वह किस प्रकार असत् कहा जा सकता है, निदान, असत् से विलक्षण है, वास्तव में माया और प्रकृति दोनों एक हैं।
प्रश्न- यह तो निश्चय है कि सांख्य के समान कोई ज्ञान नहीं, योग के समान कोई बल नहीं, इनके कत्र्त कपिल और पतंजलि ने श्रुति को प्रमाण माना है, फिर वह वेद शास्त्र के विरूद्ध कैसे जा सकते हैं?
उत्तर- सांख्य और योग में मिलावट का होना भी सम्भव है और उनके अर्थ भी वेद के विरूद्ध किये जा सकते हैं। इसलिये यह नियम स्थिर कर दिया है कि जो शास्त्र वेद के आशय का विरोधी हो, वह अप्रमाणित माना जाये, कपिल और पतंजलि के दर्शनों की आलोचन इसलिये की गई है कि सबसक हृदय में वेदों का गौरव बैठ जाये कि जब इतने बड़े विद्वानों का कथन भी वेद विरूद्ध होने पर क्या महत्व रख सकता है और अन्य ग्रन्थ भी किस गिनती में हैं?
प्रश्न- सांख्य योग में और शास्त्रों से क्या विशेषता है, जो उनको ही उदाहरण के लिये प्रस्तुत किया गया?
उत्तर- योग और सांख्य मुक्ति के साधन और परमात्मा के ज्ञान का सत्य मार्ग बतालाने वाले हैं, बिना परमात्मा को जाने मुक्ति का कोई अन्य मार्ग नहीं इस कारण इन्हें और शास्त्रों से विशेषता प्राप्त है। इस प्रकार ब्रह्मा को शास्त्र से जगत् का निमित्त कारण सिद्ध करके तर्क से सिद्ध करते हैं।