सूत्र :न विलक्षणत्वाद् अस्य तथात्वं च शब्दात् 2/1/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (न) नहीं (विलक्षणत्वात्) अनेक प्रकार का लक्षण होने से (अस्य) इस जगत् के (तथात्वम्) सजातीय व वैसा होता है (च) और (शब्दात्) शब्द से।
व्याख्या :
अर्थ- इस जगत् का निमित्त कारण ब्रह्मा है, वा प्रकृति? ये दो पक्ष हैं- ‘‘ब्रह्मा जगत् का निमित्त कारण शास्त्रों से सिद्ध नहीं होता’’ इस पक्ष का तो खण्डन करके सिद्ध कर दिया कि वह श्रुति से निमित्त कारण सिद्ध है, अब युक्ति से ईश्वर का निमित्त कारण होना सिद्ध करते हैं।
प्रश्न- जब कि श्रुति के अनुसार ब्रह्मा निमित्त कारण सिद्ध हो गया, तो तर्क से सिद्ध करने की आवश्यकता है?
उत्तर- यदि श्रुतियों में विरोध हो, तो तर्क संगत श्रुति ही प्राप्त प्रमाण मानी जायेगी, इसलिये तर्क की आवश्यकता है।
प्रश्न- श्रुति से निर्णीत हुए विषय में तर्क की आवश्यकता है, इसमें कोई शास्त्री प्रमाण भी है?
उत्तर- हाँ सब आचार्य मानते हैं कि ‘‘ब्रह्माज्ञान को पहले श्रुति से जानो, फिर युक्तियों से मनन करो, तब हृदय में स्थान दो’’ इसलिये तर्क से छान-बीन की आवश्यकता है।
प्रश्न- क्या कोई आस्तिक वेंद को ईश्वरीय ज्ञान मानकर भी उसमें तर्क ही स्थान देगा?
उत्तर- हाँ वेदार्थ के शुद्धाशुद्ध का निर्णय तो तर्क से ही होगा।
प्रश्न- यदि जगत् का कारण ब्रह्मा है, तो जगत् में ब्रह्मा के गुण चेतनता पवित्रता आदि सर्वत्र क्यों नहीं देखे जाते; क्योंकि कारण के गुण कार्य में होते है?
उत्तर- यह नियम उपादान कारण के लिये है, जगत् का उपादान कारण ब्रह्मा नहीं प्रकृति है, ब्रह्मा तो निमित्त कारण है।
प्रश्न- क्या अचेतन में भी चेतन के समान व्यावहार हो सकता है-जैसे कि जड़ आँख के लिये ‘‘आँ देखता है’’ बोला जाता है।
उत्तर- हाँ?