सूत्र :आत्मकृतेः परिणामात् 1/4/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (आत्माकृतेः) आत्मा कर्म है (परिणामात्) बिना आकृति में होने से।
व्याख्या :
भावार्थ- ब्रह्मा को जीवात्मा का कत्र्ता बताया है, उसका कारण यह है कि जब शरीर जीव प्रवेश होता है, तब उसकी आत्मा संज्ञा होती है; क्योंकि आत्मा के अर्थ व्यापक हैं जो व्याप्य के बिना हो नहीं सकता। अतः ब्रह्मा और जीव का उसका व्याप्य अर्थात् शरीर प्रदान करते हैं। तब आत्मा संज्ञा (आत्मा नाम) होता है और शरीर अनेक प्रकार के हैं। उसमें जाकर निराकर आत्मा अनेक प्रकार का ज्ञात होता हैं उस आकृति के परिणाम से उसको उत्पन्न हुआ प्रकट किया गया है। वास्तव में वह नित्य है, निदान उसकों नित्य होते हुए भी उस परिमाण के कारण बना हुआ कह सकते हैं।
प्रश्न- अधिक मनुष्य जगत् को कार्य नहीं मानते और ब्रह्मा के कारण दोनों से भी नकार करते हैं?