सूत्र :अभिध्योपदेशाच् च 1/4/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अभिद्यः) भेद से नित्य (उपदेशात्) उपदेश करने से (च) भी।
व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि आत्मा शब्द का उपदेश करते हुए उसके व्याप्य को पृथक् नहीं बतलाया और बिना व्याप्य के व्यापक कहा नहीं सकता; इस कारण आत्मा शब्द दो वचन हैं, जो बिना व्याप्य के कोई अर्थ नहीं देती। ऐसे ही मकड़ी का दृष्टान्त भी जीव और शरीर के भेद के बिना ही दिया गया है। और वहाँ शरीर और जीव में भेद होते हुए एक ही प्रकट किया गया है। उस उपदेश से जिस प्रकार मकड़ी जाले का उपादान कारण और निमित्त दोनों हैं, ऐसे ही आत्मा को जो व्याप्य से संयुक्त है, जगत् के दोनों कारण कह सकते हैं; परन्तु जब भेद से उपदेश करें, तब दोनों पृथक् होंगे। जब दूसरे की भाँति अपने को पृथक् करते हैं, तब मैं शब्द से शरीर और जीव दोनों लेते हैं। परन्तु जिस समय आप विचारते हैं, तब शरीर से रहित अपने को मैं कहते हैं। इस प्रकार अन्तर रहित उपदेश करने से आत्मा दोनों का कारण हो सकता है।
प्रश्न- इस प्रकार दोनों स्वीकार करें, सत्यपूर्वक जो जीव ब्रह्मा का भेद सिद्ध है और ब्रह्मा जगत् का निमित्त कारण युक्ति और प्रमाणों से लिया जाता है, क्यों न किया जावे?