सूत्र :प्रकृतिश् च प्रतिज्ञादृष्टान्तानुपरोधात् 1/4/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (प्रकृतिः) उपादान कारण (च) भी (प्रतिज्ञा) दावा (दृष्टान्त) और उदाहरण से (अनुपरोधात्) विरोध न होने से।
व्याख्या :
भावार्थ- यदि ब्रह्मा को जगत् का निमित्त कारण स्वीकृत किया जावे, तो प्रकृति को उपादान कारण स्वीकार करना पड़ेगा। जिस प्रकार घट रचता कुम्हार है वा आभूषण बनाने वाला सुवर्णकार है, उनका उपादान कारण मिट्टी और सुवर्ण पृथक् हैं; इसी प्रकार मानने से उस पक्ष में भेद आ जावेगा कि जिस एक के जानने से सब जाने जाते हैं और दृष्टान्त जो दिये हैं, वह सब उपादान कारण के दिये हैं, उनसे भी विरोध होगा। इस कारण ब्रह्मा को जगत् का निमित्त कारण और उपादान कारण दोनों स्वीकार करना उचित नहीं।
प्रश्न- यह किस प्रकार सम्भव हो सकता है कि किसी वस्तु का उपादान कारण वा निमित्त कारण एक हो। इसमें दृष्टान्त का अभाव है।
उत्तर- सूत्रकार उस शंका को बहिष्कार करते हैं कि यदि प्रकृति न हो, तो ब्रह्मा ने जगत् किस प्रकार बनाये। वह कहते हैं कि हमारा आत्मा शब्द कहने से दानों आ जाते हैं। जैसे मकड़वाले दृष्टान्त से दोनों अर्थात् जीव और शरार एक मकड़ी शब्द से लिये जाते हैं। यहाँ ब्रह्मा को वह मायासहित स्वीकार करते हैं, केवल स्वीकार नहीं करते; क्योंकि अकेले में आत्मा शब्द प्रयोग नहीं हो सकता, और बिना व्यवप्य के व्यापक कहला नहीं सकता।
प्रश्न- दोनों कारण कैसे स्वीकार हो सकते हैं?