सूत्र :प्रतिज्ञासिद्धेर् लिङ्गम् आश्मरथ्यः 1/4/20
सूत्र संख्या :20
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (प्रतिज्ञा) दावा (सिद्धेः) सिद्ध हो जाने से (लिंगम्) परमात्मा के लेने का चिन्ह (आश्मरथ्यः) आश्मरथ्य आचार्य का कथन है।
व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि यह प्रतिज्ञा की कि उस एक आत्मा के जानने से सब ही जाना जाएगा। उस पक्ष का प्रमाण होना कि परमात्मा के जानने से ही सब जाना जाता है, यह चिन्ह इस बात का प्रमाण है कि याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी की कथा में आत्मा शब्द से परमात्मा ही लेना उचित है- ऐसी आश्मरथ्य आचार्य मानते हैं। अतः पक्ष सिद्ध नहीं हो सकता।
प्रश्न- बहुधा आचार्य इस स्थान पर जीव ब्रह्मा का भेद अभेद निकालते हैं।
उत्तर- अभेद के कारण हम प्रथम बता चुके हैं कि जिस प्रकार दर्पण सम्मुख रखते ही नेत्र और सुर्मा का एक साथ ज्ञान होता है, ऐसे ही एक साथ ही जीव और ब्रह्मा का ज्ञान होता है। जब मन शुद्ध और पवित्र होगा, तब ही दोनों का ज्ञान होगा।
प्रश्न- न्याय दर्शन में तो मन का लक्षण यह किया गया है कि जिसके कारण एक काल में दो वस्तुओं का ज्ञान नहीं हो सकता। अब जीव और ब्रह्मा का एक साथ कैसे ज्ञान हो सकता है?
उत्तर- दो इन्द्रियों के विषयों का एक साथ ज्ञान नहीं होता, जीव और ब्रह्मा दो इन्द्रियों के विषय नहीं, इस कारण एक साथ ज्ञान हो सकता है। इस पर काशकृत्स्न आचार्य की सम्मति प्रकट करते हैं।