सूत्र :अवस्थितेर् इति काशकृत्स्नः 1/4/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (अवस्थितेः) उसमें रहने से (इति) यह (काशकृत्स्नः) काशकृत्स्नः आचार्य मानते हैं।
व्याख्या :
भावार्थ- जीव में ब्रह्मा है; जैसा वृहदारण्यक उपनिषद् के वाक्य से सिद्ध हो चुका है, इस कारण जीव और ब्रह्मा का एक साथ ज्ञान होता है; और ब्रह्मा के जानने से ही सबकी मुथ्क होती है, इस कारण आत्मा शब्द से ब्रह्मा का अर्थ लेना उचित है।
प्रश्न- जबकि श्रुति2 ने यह लिखा है कि उस जीवामा और ब्रह्मा पृथक्-पृथक् हैं, क्योंकि यदि प्रवेश करके कहते, तो परमात्मा और माया दो होते हैं-एक प्रवेश करनेवाला, दूसरा जिसमें प्रवेश किया; परन्तु अनु शब्द ने तीन सिद्ध किये-प्रथम् प्रकृति जिसमें प्रवेश किया, दूसरे जीव, जो प्रवेश हुआ, तीसरा परमात्मा, जो अनुप्रवेश हुआ। इस कारण सबमें भीतर होने से परमात्मा का ज्ञान अर्थात् सबका ज्ञान हो सकता है।
प्रश्न- यदि जीव और ब्रह्मा को एक ही मान लिया जावे, तो क्या दोष है?
उत्तर- प्रथम तो श्रुतियाँ और सूत्र अप्रमाण होंगे, जिनमें भेद बतलाया है; दूसरे उन श्रुतियों के विरूद्ध होने से अभेदवाली श्रुतियाँ भी अप्रमाण हो जावेंगी। जब श्रुति और सूत्र अप्रमाण हो गये, तो वेदान्दशास्त्र भी प्रमाण नहीं रहेगा।
प्रश्न- यदि भेदवाली श्रुति को उपाधिकृत भेद और अभेदवाली को साक्षात् भेद में लगावें, तो क्या दोष होगा?
उत्तर- उस अवस्था में जीव के अन्दर ब्रह्मा नहीं कहला सकता, जैसा जैसा कि श्रुति बतलाती है। ऐसा कोई दृष्टान्त नहीं, जहाँ उपाधिकृत भेद एक दूसरे के अन्दर जा सके। उसमें आत्माश्रयी दोष है, ऐसे और भी कई दोष हैं।
प्रश्न- क्योंकि हम जगत् को मिथ्या मानते हैं, इस कारण यह सब दोष भी मिथ्या है; श्रुति भी जगत् के अन्दर होने से मिथ्या ही है, इस कारण जब यह दोष मिथ्या है, तो मिथ्या से हमारी क्या हानि हो सकती है।
उत्तर- जब जगत् के अन्दर होने से श्रुति और दोष मिथ्या है, तो तुम्हारा वाक्य भी जगत् में होने से मिथ्या है तो तुम्हारा वाक्य भी जगत् में होने से मिथ्या है और ब्रह्मा का अभेद भी जगत् के अन्दर होने से मिथ्या हो गया। जब यह मिथ्या हुआ, तो उसके विरूद्ध सत्य होगा कि जगत् मिथ्या है और जीव ब्रह्मा का भेद है?
प्रश्न- यह स्वीकार किया जावे कि जगत् सत्य है, तो जगत् में होने से हमारा यह वाक्य भी सत्य होगा कि जगत् मिथ्या है और जीव ब्रह्मा का भेद है ?
उत्तर- क्योंकि उस वाक्य के सत्य सिद्ध करने के लिये जगत् का सत्य होना आवश्यक है, जिससे उस वाक्य को सत्य सिद्ध करने के लिये खण्डन होने की अवस्था में भी जगत् यह वाक्य मिथ्या सिद्ध होता है और जगत् के मिथ्या होने की अवस्था में भी जगत् के अन्दर होने से मिथ्या है। निदान दोनों दशाओं में मिथ्या होने से जीव और ब्रह्मा के अभेद का पक्ष गिर जाता है।
प्रश्न- जीव और ब्रह्मा की कारण सिद्ध किया है, वह निमित्त कारण ही है, उपादान कारण क्यों नहीं ?