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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :अन्यार्थं तु जैमिनिः प्रश्नव्याख्यानाभ्याम् अपि चैवम् एके 1/4/18
सूत्र संख्या :18

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (अन्यार्थन्तु) दूसरे के अर्थ के कारण (जैमिनिः) व्यासजी के शिष्य जैमिनि मानते हैं (प्रश्न व्याख्यानाभ्याम्) उसके शास्त्रार्थ देखने से (अपि) भी (च) और (एवम्) ऐसे ही (एके) एक जगत् मानते हैं।

व्याख्या :
भावार्थ- जैमिनि आचार्य का कथन है कि उस समय तर्क करने की आवश्यकता नहीं। उस शब्द में जीव लेना चाहिए वा ब्रह्मा; क्योंकि कोषीतकी ब्रह्माण में जो उस जगह प्रश्न वा उत्तर है, उनसे स्पष्ट प्रकट होता है कि वहाँ प्रश्न यह है। प्रश्न- सोये हुए मनुष्य के जागने से प्राण आदि से पृथक् जीव में जीव से पृथक् विषय विद्यमान होता है। ऐ वालाक्य मनुष्य! यह कहाँ सोता है, यह कहाँ उत्पन्न हुइा है, यह कहाँ से आया है? उत्तर- जब यह सोकर स्वप्न (ख्याब) नहीं देखता, उसमें प्राण किस प्रकार के हैं और यह जीव एक ओर लगकर ब्रह्मा के आनन्द को भोगता अर्थात् निद्रा की अवस्था में जीव बाहर के विषयों को छोड़कर केवल ब्रह्मा के आनन्द को भोगता है और पुनः उस आत्मा से प्राण पृथक् होकर इन्द्रियों को जगानते हैं और उससे सब संसार जागता है। प्रश्न- निद्रा की अवस्था में जीव उपाधि को त्याकर ब्रह्मा क्यों नहीं हो जाता। उत्तर- ब्रह्मा में उपाधि नहीं आ सकती; इस कारण बह्य जीव नहीं बनता। जब ब्रह्मा जीव बना नहीं, तो उपाधि कहना व्यर्थ हैं पुनः उपाधि के नाश से जीव-ब्रह्मा कैसे बन सकता है? निश्चय निद्रा की अवस्था में जीव का संबंध बाहर की वस्तुओं से हटकर अपने अंदर होने से उसको ब्रह्मा के गुण आनन्द की प्राप्ति होती है। उस समय पर माध्यन्दिनी शाखावाले जीव को बतलाकर और उसके अन्दर रहनेवाले ब्रह्मा को ही योग्य स्वीकार करते हैं। इस पर और युक्ति देते हैं।