सूत्र :समाकर्षात् 1/4/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (समाकर्षात्) वादानुवाद करके सत् बतलाने से।
व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि इच्छुकों को जब तक दोनों और का विचार न करा दिया जावे, वह सत्य को जान नहीं सकते; इस कारण वेदान्त के आचार्य प्रत्येक विचार को, जो जिज्ञासु के लिये ज्ञान के रास्ते में रूकावट मालूम होता है, युक्तिसहित प्रस्तुत करके जिज्ञासु अर्थात् विद्यार्थी को परीक्षा करते हैं। पश्चात! डसका खण्डन करके देते हैं; इस कारण वेदान्द का तात्पर्य एक ही है। शेष सअ वाद जिज्ञासु की बुद्धि के कारण प्रस्तुत किये हैं जैसे कहा है कि-ब्रह्मा असत् हैं; यदि चेतन असत् है, तो नियमानुसार हरकत कैसे हो सकती है। जड़ पदार्थ प्रकृति में स्वाभाविक क्रिया (तकरीक विज्जात) मानकर कोई पदार्थ पदार्थ मुतहरिक और कोई पदार्थ गैरमुतहर्रिक हो नहीं सकता और न परमाणु में संयोग हो सकता है; क्योंकि क्रियावान (मुतहर्रिक) पदार्थ में एक ही रफतार (गति) हो, जो परिमाणु की अवस्था में समान (हमजिन्स होने से आवश्यक है कि संयुक्त होना (बन जाना) बुद्धि विरूद्ध (मुहाल अक्ल) है। यदि क्रियारहित (गैरमुतहर्रिक) माना जावे, तो भी प्रकृति में संयोग नहीं हो सकता और संयोग बिना सृष्टि बन नहीं सकती। इस प्रकार ब्रह्मा को अस्त्तिव वेदान्तों के और प्रकरणों में जो विचार किया है, वह सब जिज्ञासु की योग्यता और सृष्टि में जो महाप्रलय से प्रथम अनेक प्रकार की प्रलय होती है, उसकों बतलाने के कारण और यह बतलाने के लिये कहीं कारण परंपरा से वर्णन किया जाता है, कहीं साक्षात् जैसे बहुधा ईसाई कहते हैं कि मसीह इब्राहीम का पुत्र है, जिसके अर्थ यह होते हैं कि से होता है कि प्रवाह से मसीह का संबंध इबा्रहीम से है। इस प्रकार के कारण होने से तो वेदान्त के वाक्यों में विरोध है नहीं; किन्तु सब वाक्य अपने-अपने समय पर आवश्यक हैं। जैसे कोई बालक पिता से प्रश्न करे कि मनुष्य किसे कहते हैं, वह एक-एक अंग को समझाने के लिये बतलाकर उसकों बतलावे कि इस पदार्थ का नाम मनुष्य है।
प्रश्न- कौषीतकी ब्राह्यण में बालाक्य अजातशत्रु की कथा में सुना है कि जो इन पुरूषों का कर्ता, जिसका कर्म है, वह जानने योग्य है; उस जगह जीव जीव जानने योग्य है, प्राण जानने योग्य है वा परमात्मा; क्योंकि गुणों से तीनों प्रकट होते हैं। सब शरीर की हरकत प्राणों के सहारे होती है। यहद इंजन में भाप न हो, पेट में अग्नि और भोजन न हो, हरकत नहीं कर सकता। दूसरे जीव का धर्म ज्ञान और प्रयत्न है और कर्म प्रयत्न से होता है; इसलिये जीव मालूम होता हैं ब्रह्मा का पुरूषों का कर्ता होना भी बहुत जगह लिखा है; इस कारण शंका उत्पन्न होती है कि यहाँ किससे अभिप्राय है?