सूत्र :प्राणादयो वाक्यशेषात् 1/4/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (प्राणादयः) प्राण आदि हैं (वाक्यशेषात्) आगे वाक्य में विषय शेष होने से।
व्याख्या :
भावार्थ- जिस मन्त्र में पंच 2 जना यह संख्या आई है, जिससे पच्चीस संख्या मिलाकर यह प्रकृति के पच्चीस तत्व सिद्ध किये जा सकते हैं। इससे आगे मन्त्र में ब्रह्मा का स्वरूप बतलाने के कारण आदि का विधान है, जिससे बतलाया गया है कि वह ब्रह्मा प्राणों का प्राण है, चक्षुओं का चक्षु है, कर्णों का कर्ण है, मन का मन उससे पता लगता है है कि वहाँ का शेष विषय प्रकृति के सम्बन्ध में नहीं; किन्तु ब्रह्मा से ही सम्बन्ध रखता है।
प्रश्न- प्राण आदि में जन शब्द का प्रयोग किस प्रकार सत्य हो सकता है?
उत्तर- तत्त्वों में जन शब्द का प्रयोग नहीं हो सकता। दोष दोनों ओर एक-सा है; परन्तु अगले प्रकरण के कारण प्राण आदि लिये जा सकते हैं; क्योंकि शाब्दिक और पारिभाषिक अर्थ दोनों में नहीं पाये जातेः परन्तु एक के साथ सम्बन्ध ज्ञात होता है, दूसरे के साथ सम्बन्ध भी नहीं प्रतीत होता।
प्रश्न- बहुधा मनुष्यों ने पंच जन शब्द के अर्थ देव, पितृ, गन्धर्व, असुर और राक्षस लिये हैं और अनेक मनुष्य चारों वर्ण औ पाँचवाँ निषाद् इससे आशय लेते हैं।
उत्तर- यह भी हो सकता है आचार्य का अर्थ यह है कि यहाँ पच्चीस तत्त्व इस संख्या से प्रयोजन नहीं।
प्रश्न- माध्यन्दिनी शाखावाले तो पाँच जन से प्राण आदि ले सकते है; परन्तु कण्व शाखावाले क्या लें?