सूत्र :ज्योतिरुपक्रमा तु तथा ह्य् अधीयत एके 1/4/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (ज्योतिःरूप) अग्निस्वरूप (उपक्रमात्) प्रवाह से (तु) भी (तथा) ऐसे ही (अधीयते) पढ़ते हैं (एके) एक शाखावाले।
व्याख्या :
भावार्थ- परमेश्वर से उत्पन्न ज्योति अर्थात् अग्नि, जल, पृथ्वी तीन प्रकार के भूतों को अजा विचार करना चाहिए। यहाँ अजा अर्थात् उत्पत्ति रहित का अर्थ तीन भूतों के संगठन से तीन गुणों की साम्यावस्था से नहीं; क्योंकि एक शाखवाले परमेश्वर से उत्पत्ति अग्नि, जल, पृथ्वी को लाल, श्वेत, काला रंग है, वह पृथ्वी का हैं उन्ही तीन भूतों को लाल, श्वेत, काला रंग है, वह पृथ्वी का है। उन्ही तीन भूतों को इस स्थान पर स्मरण किया है। लाल आदि साधारण शब्दों को कथन से; क्योंकि गुणों का विधान इन रंगों से संदिग्ध और भूतों का निश्चित, इसलिये संदिग्ध की जगह निश्चित अर्थ लेना न्ययाय कहलाता है।
प्रश्न- श्रुति में न उत्पत्ति बतलाई है और न दूसरी जगह भूत उत्पत्ति है; इस कारण यह अर्थ नहीं हो सकता?