सूत्र :कल्पनोपदेशाच् च मध्वादिवदविरोधः 1/4/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (कल्पनोपदेशात्) कल्पना से उपदेश करने के कारण (मध्वादिवात्) मध्वादि की प्रकार (अविरोधः) विरोध नहीं है।
व्याख्या :
भावार्थ- जिस प्रकार मधु आदि की कल्पना करके उपदेश किया है, ऐसे ही यहाँ शब्द अजा अर्थात् बिना उत्पत्ति के कारण गौणिक नहीं; किन्तु अग्नि, जल, पृथ्वी तीनों के लिये यह शब्द कल्पित गढ़ा गया है। लोक में अजा का शब्द कल्पनार्थ करने के कारण कहा जाता है, केवल गुणी होने से प्रकृति का नाम हो सकता है। पृथ्वी, अग्नि के कारण यह शब्द न तो पारिभाषित हो सकता है न गौणिक (बस्फी) स्वीकार किया जा सकता है और पृथ्वी, जल, अग्नि भी प्रकृति में सम्मिलित है; इस कारण प्रकृति ही समझना उचित है। सूत्रकार का तर्क केवल इसलिये है कि प्रकृति को स्वतन्त्र जानकर भूल से प्रकृतिवाद की भाँति जगत्कत्र्ता न मान लिया जावे। वास्तव में यह प्रकृति को माया के नाम से स्वीकार करते हैं।
प्रश्न- शंकराचार्य आदि प्रकृति की शक्ति स्वीकार करते हैं।
उत्तर- संसार में स्वामी को सृष्टि और राजा की प्रजा आदि उसकी शक्ति कहाती है; इस कारण प्रकृति को परमात्मा की शक्ति व सामथ्र्य मानने में कोई दोष नहीं यदि प्रकृति स्वतन्त्र और चेतन होती, तो कोई दोष होता।
प्रश्न- अग्नि, जल आदि उस संख्या में जो सांख्य में गिना चुके हैं; इस कारण प्रकृति अजा शब्द से लेने में कोई दोष नहीं।