DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :त्रयाणाम् एव चैवम् उपन्यासः प्रश्नश् च 1/4/6
सूत्र संख्या :6

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (त्रयाणाम्) तीनों को (एवं) है (च) और (एवम्) ऐसे ही (उपन्यासः) कथा (प्रश्नश्च) और प्रश्न हैं।

व्याख्या :
भावार्थ- कठोपनिषद् में जो कथा है, उसमें तीन वा माँगे गये हैं और उनमें तीन ही प्रश्न- किये हैं-प्रथम अग्नि, दूसरे जीव, तीसरे परमात्मा का। जबकि उन प्रश्नों में प्रकृति का वर्णन कैसे आ सकता है; इस कारण कठोपनिषद् के विषय से जगत्कर्ता परमात्मा ही सिद्ध होते हैं। प्रश्न- यद्यपि नचिकेता के प्रश्न में अग्नि है; परन्तु अग्नि सतोगुणी है, जो प्रकृति के और गुणों का भी विधान करता है; इस कारण भाग के प्रश्न से कुल के प्रश्न उपचार से ले सकते हैं। निदान उसमें तीनों नित्य पदार्थों का प्रश्न है; जिसमें से एक प्रकृति भी है। उत्तर- यदि अग्नि भूत के सम्बन्ध में प्रश्न होता, तो सम्भव था; परन्तु यहाँ यज्ञ के स्म्बन्ध में अग्नि जो स्वर्ग का कारण है, उसके सम्बन्ध का प्रश्न है। जिससे स्पष्ट प्रकट होता है कि प्रश्नकर्ता नचिकेता को अग्नि से कोई प्रयोजन नही, जो सतोगुण के नाम से प्रसिद्ध की जाती है; क्योंकि यज्ञ की अग्नि कार्य और सतोगुण कारण रूप का नाम है; निदान कठोपनिषद् का तात्पर्य ज्ञानवाले अव्यक्त से है। प्रश्न- नचिकेता के प्रश्न तीन वरों के अनुकूल हैं-प्रथम वर में तो चजिचेकेता ने अपने पिता की प्रसन्नता का वर माँगा; दूसरे अग्नि के सम्बन्ध में प्रश्न किया; तीसरे में आत्मा विद्या का प्रश्न उठाया। परमात्मा का प्रश्न तीनों वरों से पृथक् है, इस कारण तीसरा प्रश्न, जो परमात्मा के सम्बन्ध में बतलाया है; वह जीव के सम्बन्ध में है। तीसरे वर का प्रथम भाग होने से जीव के सम्बन्ध में ही है। उत्तर- सांख्य की परिभाषा में महत् शब्द मन का वाचक है; परन्तु उपनिषदों में भी महत् का वही अर्थ उचित नहीं; इसकारण जो अव्यक्त शब्द उपनिषद् में आया है, वह जीव और ब्रह्मा के कारण हो सकता है। क्योंकि आत्मा शब्द जीव और ब्रह्मा दोनो के लिये आते हैं, इस कारण आत्मा के सम्बन्ध में प्रश्न से दोनों का अर्थ लिया जा सकता है। इस कारण सांख्य की भाँति अच्यक्त का अर्थ प्रकृति कर्ता सत्य नही; किन्तु उपनिषद् में उसका अर्थ परमात्मा ही करना उचित है। प्रश्न- क्या सांख्य की परिभाषा और उपनिषद् की परिभाषा में अन्दर है जो, अव्यक्त (गैर मुजरिस्सम) का अर्थ परमात्मा किया जावे?

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