DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :चमसवदविशेषात् 1/4/8
सूत्र संख्या :8

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (चमसवत्) चमसा की भाँति (अविशेषात्) कोई विशेषता न होने से।

व्याख्या :
भावार्थ- क्योंकि इस जगह न उत्पन्न होनेवाले से अर्थ वाले से जो प्रयोजन सत्, रज, तम गुणवाली प्रकृति का लिया जाता है, उसके लिये विशेषता नहीं। दूसरे अर्थ भी हो सकते हैं जैसे उपनिषदों में जल श्वेत, अग्नि को लाल और पृथ्वी को काला बतलाया है; इसलिये अजा का अर्थ पृथ्वी जल और अग्नि हो सकता है। प्रश्न- जबकि अनेक प्रकार की प्रजा के स्वरूप से उत्पन्न होनवाली बतलाया है, उससे स्पष्ट ढंग पर प्रकृति ही मानना पड़ती है। उत्तर- जल, अग्नि और पृथ्वी से जगत् की उत्पत्ति सम्भव है; इस कारण उपादान कारण उनको स्वीकार करने में कोई दोष नहीं। प्रश्न- क्योंकि वायु के बिना जीवन असम्भव है और पृथ्वी, जल और अग्नि के भीतर वायु आती नहीं; इस कारण सत्, रज, तुम तम तीन गुणवाली प्रकृति ही लेना उचित है; क्योंकि अनेक प्रकार की प्रजायें गुणों से ही उत्पन्न होती है। उत्तर- वेदान्तशास्त्र में ज्ञानपूर्वक क्रिया इस श्रुति में नहीं लिखी। प्रकृति में ज्ञानपूर्वक क्रिया अवैदिक है न कि प्रकृति से जगत् का परमात्मा के आधीन होकर उत्पन्न होना। इस पर आक्षेप करते है।

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