सूत्र :महद्वच् च 1/4/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (महत्) महत् शब्द की (वत्) प्रकार (च) से।
व्याख्या :
भावार्थ- जिस प्रकार महत् शब्द सांख्य में मन के लिये आया है; परन्तु वेद में इस परिभाषा में प्रयुक्त नहीं। जैसा कि लिखा है ‘‘महान्त विभुमात्मानम्’’ जो आत्मा प्रत्येक शरीरधारी पदार्थ के संग संयोग रखनेवाला, महत् परिमाणवाला अर्थात् सबसे बड़ा है, जिससे बड़ा कोई नहीं; ऐसे ही और वेद-मंत्रों में सबसे बड़े के लिये यह शब्द आया है; मन व बुद्धि के लिये नहीं आया। इस कारण वेद और उपनिषदों की परिभाषा में सांख्य से अन्तर होने से उस जगह अव्यक्त का अर्थ परमात्मा लेना चाहिए, प्रकृति नहीं। इस कारण अनुमान के द्वारा भी प्रकृति वेद के अनुकूल जगत्कर्ता नहीं हो सकती।
प्रश्न- प्रकृति को जगत्कता उपनिषदों ने स्वीकार किया है। जैसा कि लिखा कि एक अज अर्थात् जन्मरहित सत्, रज और तमो गुणवाली जगत् को स्वरूप से रचनेवाली है।