सूत्र :ज्ञेयत्वावचनाच् च 1/4/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थ- (ज्ञेयत्व) जानने के योग्य (अवचनात्) न बतलाया जाने से (च) भी।
व्याख्या :
भावार्थ- प्रकृति और पुरूष दोनों एक नहीं हो सकते; क्योंकि सत, रज और तम गुण के कारण प्रकृति जानने-योग्य बतलाती गई है और पुरूष गुणों से रहित होने के कारण योग्य नहीं।
प्रश्न- सत् किसे कहते हैं?
उत्तर- जिसका स्वभाव प्रकाश करना ही है। अग्नि सतोगुण कहलाती है।
प्रश्न- रज किये कहते हैं?
उत्तर- जो न तो प्रकाश करे और न ढाँपे, उसे रज कहते हैं। चल, वायु, प्रकाश, काल और दिशा यह पाँच रज कहलाते हैं।
प्रश्न- तम किसे कहते हैं?
उत्तर- जो ढाँपने का गुण रखे, उसे ते कहते हैं। इस कारण पृथ्वी तम कहलाती हैं निदान प्रकृति और पुरूष दोनों पृथक्-पृथक् हैं। प्रकृति सत् है’ जीवात्मा सत्-चित है’ परमात्मा सच्चिदानन्द है; क्योंकि परमात्मा पृथ्वी के अन्दर व्यापक है; इस कारण प्रकृति को उसका शरीर कहते हैं। सांख्य शास्त्र में उसको प्रकृति कहा गया है, वेदान्त में माया नाम और न्याय में परिणाम व भूत नाम दिया गया है। निश्चय सब शास्त्र एक ही भवन की भित्तियाँ हैं; यद्यपि प्रत्येक श्रेणी पृथक्-पृथक् होती है; परन्तु मंजिल के कारण सब आवश्यक होती हैं।
प्रश्न- यह कथन सत्य नहीं कि प्रधान अर्थात् प्रकृति को ब्रह्माके हैं, वह गुण होती हैं; परन्तु प्रकृति में पाये जाते हैं।