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वेदान्त-दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वेदान्त-दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :वदतीति चेन् न प्राज्ञो हि प्रकरणात् 1/4/5
सूत्र संख्या :5

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पदार्थ- (वदति) कहता है (इतिचेत्) यदि यह शिंका हो (न) नहीं (प्राज्ञः) ज्ञानवाला (हि) निश्चय (प्रकरणात्) विषयों से।

व्याख्या :
भावार्थ- यदि यह कहा जावे कि जो गुण सांख्यवाली प्रकृति में पाये जाते हैं, वह ब्रह्मा में भी हैं। जैसे श्रुति का कथन है कि न तो उसमें शब्द, गुण, न स्पर्श अर्थात् छूई जाती है, न रूप है, वह नाश से रहित है और रस अर्थात् स्वाद और गंध रहित है। उसका आदि है और न अन्त। महत से परे है और अटल है। उसको जानकर मृत्यु के दुःख से छूट जाता है। और जैसे प्रकृति को उन गुणों से शून्य बतलाकर महत् से परे अव्यक्त अर्थात् वर्णनातीत कहा है, ऐसे इस स्थान पर परमात्मा के गुणों में बतलाया है। इस कारण उपनिष् में अलक्ष्य से प्रकृति ले सकते हैं। उसके उत्तर में ऋषि कहते हैं-ऐसा नहीं हो सकता है; क्योंकि इस स्थान पर विषय के विचार से अलक्ष्य ऐसा ज्ञात होता है, जो चेतन हो जड़ प्रकृति का विषय नहीं। प्रश्न- अव्यक्त बिना शरीरवाला अर्थात् अप्रकाश्य शब्द से प्रकृति तो स्वीकार की गई है, पुरूष कहीं नहीं बतलाया गया? उत्तर- गीता में कृष्ण का कथन है कि जो मुझ शरीर रहित को शरीरधारी मानता है, वह बुद्धि से शून्य है; इस कारण अन्य स्थान पर भी विद्यमान् किया गया है। प्रश्न- जबकि वहाँ बिना शरीरधारी अर्थात् अव्यक्त से पृथक् पुरूष बतलाया है, जो परमात्मा का नाम है; इस कारण महत् से परे अर्थात् उसका कारण प्रकृति ही को लेना चाहिए।