सूत्र :विद्याविद्यातश्च संशयः 2/2/20
सूत्र संख्या :20
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आभ्यन्तर वस्तुओं में संशय विद्या और अविद्या से होता है कुछ जानने और कुछ न जानने से सन्देह उत्पन्न होता है। जैसे किसी ज्योतिषि को यह ज्ञान हो कि सूर्य ग्रहण होगा, परन्तु यह ज्ञान न हो कि किस समय होगा, वा किस दिन वा मुहूत्र्त में होगा? तो उसको यह सन्देह हो सकता है कि उस समय होगा या नहीं। अथवा अपनी सत्ता को सब जानते हैं परन्तु यह ज्ञान न होना कि रूधिर की गति ही जीवात्मा है वा इसके अतिरिक्त कोई अभौतिक जीवात्मा है, ऐसे ही मन का होना तो ज्ञान होता है, परन्तु यह सन्देह हो सकता है कि मन भौतिक है या अभौतिक और नित्य है या अनित्य? जड़ है वा चैतन्य? इस ही प्रकार बुद्धि द्रव्य है वा गुण, नित्य है वा अनित्य, यदि गुण है तो जीवात्मा का स्वाभाविक गुण है, यदि नैमित्त्कि है तो किस सम्बन्ध से उत्पन्न हो गया है। इसी प्रकार वाह्य अइौर आभ्यन्तर दोनों प्रकार की वस्तुओं में संशय होना सम्भव है, अब शब्द विषयक परीक्षा आरम्भ करते हैं-