सूत्र :एतेन दिगन्तरालानि व्याख्यातानि 2/2/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कोणों की ओ जो दिशायें है, उनका व्यवहार भी इस सूर्य की ओर देखने से सिद्ध होता है, क्योंकि सूर्य की ओर जो दृष्टि करेंगे उससे जो रेखा उत्पन्न होगी और दक्षिण हाथ की ओर जो रेखा उत्पन्न होगी, उनसे एक समकोण बन जावेगा, जब उस समकोण में भाग दिया जावेगा तो पूर्व और दक्षिण कोण उत्पन्न होगा। जब छिपने के समय सूर्य की ओर दृष्टि करेंगे तो उससे जो रेखा उत्पन्न होगी और जो दायें हाथ की ओर रेखा जावेगी और उससे तो समकोण उत्पन्न होगा उसके भाग के उत्तर पश्चिमी कोण उत्पन्न होगा। इसी प्रकार दो कोण बायें हाथ से पैदा हो जावेंगे दोपहर के सामय की ओर देखने से उसके विरूद्ध नीचे की दिशा का ज्ञान हो जावेगा। इसलिए दिशा के ये विभाग तो सूर्य की गति और सम्बन्ध के कारण हैं। यहां तक दिशा का विचार समाप्त हुआ अब आकाश के गुण शब्द की परीक्षा करते हैं।