सूत्र :तुल्यजातीयेष्वर्थान्तरभूतेषु विशेषस्य उभयथा दृष्टत्वात् 2/2/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द कान से सुने जाने से गुण प्रतीत होता है, जैसे और इन्द्रियों के विषय रूप आदि हैं। आशय यह है कि जिस प्रकार रूप रस आदि गुण इन्द्रियों से ग्रहण किए जाते हैं वैसे ही शब्द भी इन्द्रिय से ग्रहण किये जाते हैं वैसे ही शब्द भी इन्द्रिय से ग्रहण किया जाता है। और हल्का भारी शब्द होने से, उन गुणों का आश्रय होने से द्रव्य प्रतीत होता है, क्योंकि उसमें गुण पाये जाते हैं, इसलिए यह सन्देह उत्पन्न होता है कि शब्द द्रव्य है या गुण ?
व्याख्या :
प्रश्न- जबकि शब्द सामान्य रीति पर कार से सुना जाता है तो उसमें संशय ही क्यों हो सकता है?
उत्तर- संशय उत्पन्न करने वाला सामान्य धर्म का ज्ञान होना और विशेष धर्म का ज्ञान न होना बता चुके हैं, इसलिए साधारणतया शब्द के सुने जाने से उसकी सत्ता का तो ज्ञान होता है इसलिए शब्द के होने में तो कोई सन्देह नहीं, किन्तु इस बात में सन्देह है कि शब्द द्रव्य है, गुण है वाकर्म है? अगले सूत्र में सिद्ध करते हैं कि शब्द गुण है।