DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :सतो लिङ्गाभावात् 2/2/26
सूत्र संख्या :26

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : शब्द सत् (नित्य) नहीं है क्योंकि यदि शब्द नित्य होता तो कहने से पूर्व भी उसकी विद्यमानता का कोई लिंग होता। ऐसा कोई भी लिंग नहीं जिससे कहने और सुनने से पूर्व शब्द का होना ज्ञात हो सके। इसलिए शब्द की विणमानता में कोई लिंग न होने से ज्ञात होता है कि कहने से पूर्व शब्द विद्यमान नहीं।

व्याख्या :
प्रश्न- शब्द आकाश का गुण है, और आकाश नित्य है इसलिए उसका गुण शब्द भी नित्य हो सकता है, इसलिए शब्द से आकाश के होने का प्रमाण नहीं मिलता, क्योंकि यदि शब्द आकाश् कार्य होता तो उससे अनुमान हो सकता था; गुण से अनुवाद नहीं हो सकता। उत्तर- शब्द उत्पन्न होता है अतः नित्य नहीं, इसलिए वह आकाश का लिगंन हो सकता है, क्योंकि बिना आकाश के शब्द की उत्पत्ति हो ही नहीं सकती। शब्द के अनित्य होने में और हेतु देते है।

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