सूत्र :तथा दक्षिणा प्रतीची उदीची च 2/2/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शेष दिशाओं के प्रयोग में भी यही कारण है अर्थात् जिस समय सूर्य के सामने खड़े होते हैं, तो दक्षिण हाथ जिस और होता है, तो उसको उपचार से अर्थात् दक्षिण हाथ के सम्बन्ध से, दशिण कहते हैं, और वामहस्त के संयोग से उत्तर कहाता है; और जिस और पीठ होती है, उसके पीछे होने से, उसको पश्चिम कहते हें। फलतः यह चारों दिशायें सूर्य की और देखने से काम में लाई जाती है। बिना सूर्य के इनमें भेदोत्पत्ति नहीं हो सकती।
प्रश्न- इन चारों दिशाओं को तो इस प्रकार माना, शेष को कैसे सिद्ध करोगे।