सूत्र :इत इदमिति यतस्तद्दिश्यं लिङ्गम् 2/2/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिससे इस बात का ज्ञान हो कि यह हमसे दूर है या समीप है अर्थात् दूरी होने का ज्ञान दिशा का द्योतक है। दूरी देश वा काल की होती है, इसलिए काल के समान वरैं और परै दिशा में भी होता है, परन्तु इन दोनों की दूरी में भेद इतना है कि समय की दूरी सैकण्ड, मिनिट, घन्टा, दिन, महीना और वर्ष आदि की कमी व अधिकता के कारण, अपेक्षा से गिना जाता है, और दिशा में, मध्य में न्यूनाधिक स्थान के कारण दरी का अनुमान होता है। दूर, परे और वरै का ज्ञान होना ही दिशा का लिंग है। और विशेष कारणों के सम्बन्ध से और भी लिंग होते हैं जिनकी चर्चा आगे होगी। समय और देश के कारण से भी दूरी और समीपता के चिह्न पाये जाते हैं। जैसे रामवन्द्रजी से पाण्डव व और हरिश्चन्द्र परै हुए, यहां समय के कारण अन्तर पाया गया। ऐसे ही रूस जर्मनी से वरै है, और इंगलिस्तान परे है, यह दूरी देश के कारण से है।