सूत्र :द्रव्याणि द्रव्यान्तरमारभन्ते गुणाश्च गुणान्तरम् 1/1/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : द्रव्य के परमाणु मिलने से उसका कार्य बड़ा और खपड़ा बन सकते हैं। इसी प्रकार द्रव्य के परमाणु में जो गुण हैं, उनके संयोग से कार्य गुण की उत्पत्ति होती है। यथा-अग्नि के एक अणु में जो उष्णता और प्रकाश थे वह सूक्ष्म होने के कारण दृष्टि में नहीं आता था जब अग्नि के परमाणु मिलकर एक रूप में आ गए जिससे उसको प्रत्यक्ष हो गया। इसी प्रकार गुण प्रकाश आदि का भी प्रत्यक्ष होने लगा। आशय यह है कि जो मनुष्य शब्द से जो गुण है, कार्य जगत् की जो द्रव्य है, उत्पत्ति मानते हैं, वे मूल पर हैं। जो लोग अभाव से भाव की उत्पत्ति मानते है और दृष्टान्त देते हैं कि जिस प्रकार हल्दी और चूना मिलकर लाली उत्पन्न हो जाती है और यह गुण उन दोनों में न था यह भी उनकी भूल है क्योंकि गुणों के संयोग से इस गुण का प्रत्यक्ष (उदय) हुआ है,अभाव से भाव नहीं हुआ?