सूत्र :कार्यविरोधि कर्म 1/1/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्म का नाश उसके कार्य ही होता है। आशय यह है कि संयोग और वियोग कर्म से ही उत्पन्न होते हैं, परन्तु अन्तिम संयोग या वियोग से कर्म का नाश हो जाता है, अर्थात् जिस देश को पहुंचने के लिए कर्म किया जाता है, उस देश में में पहुंचने से कर्म का नाश हो जाता है। इन सूत्रों में द्रव्य, गुण और कर्म का वैधर्म्य दिखलाया कि द्रव्य तो अपने कार्य और कारण दोनों का नाश नहीं करता है, गुण दोनों का नाष करता है, कर्म का नाश करने वाला उसका कार्य है अब आगे द्रव्यादि के लक्षण कहते हैं। क्योंकि बिना लक्षण के किसी वस्तु की सिद्धि नहीं हो सकती हैं। प्रथम, ऋमानुसार द्रव्य का लक्षण करते हैं।