सूत्र :क्रियागुणवत्समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम् 1/1/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिसमें क्रिया को ग्रहण करने की शक्ति हो वा क्रिया करने की शक्ति या गुण हो अथवा गुण ही जिसमें विद्यमान हो वा किसी वस्तु का उपादान कारण हो सके, उसको द्रव्य कहते हैं। उपादान को ही समवाय कारण कहते हैं क्योंकि जिसका कार्य के साथ नित्य सम्बन्ध नहीं रहता। जिस प्रकार एक घड़े के बहुत से कारण है, एक कुम्हार है, दूसार मिट्टी या दोनों कपालों का संयोग है, तीसरा दण्ड और चाक आदि है। इनमें से घड़ा बनने पर सब कारण अलग हो जाते हैं, केवल मिट्टी वा दोनों कपालों का संयोग ही घड़े के साथ रहता है जिस प्रकार कुम्हार के मर जाने से उसके बनाये हुए घड़े की कोई हानि नहीं, जिस प्रकार दण्ड और चत्र टूटने से घड़े को कोई हानि नहीं पहुंचती। परन्तु जिस मिट्टी से घड़ा बना है उस मिट्टी से घड़ा बना है उस मिट्टी के न रहने से घड़ा किसी प्रकार नहीं रह सकता। इसी कारण मिट्टी ही समवाय कारण हैं, वही उपादान कारण भी कहलाता है। आशय यह है कि जिसमें क्रिया हो, जिसमें गुण हो, जो समवाय कारण हो सकता हो दूसरे पद में गुण और क्रिया नहीं रहती, अतः उनसे पृथक करने वाला लक्षण किया गया। द्रव्यों में कुछ द्रव्य क्रिया सहित (सत्रिय) हैं। यथा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और मन। गुण सब ही द्रव्यों में रहता है। अब गुण के लक्षण कहते हैः-