DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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सूत्र :सदनित्यं द्रव्यवत्कार्यं कारणं सामान्यवि-शेषवदिति द्रव्यगुणकर्मणामविशेषः 1/1/8
सूत्र संख्या :8

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : द्रव्य, गुण और कर्म में ये बातें अविशेष अर्थात् सामान्य रीत्या है दोनों में सत्ता समानतया पाई जाती है, अर्थात् यह कहा जाता है कि द्रव्य है, गुण है, कर्म है। इसी प्रकार अनित्यया और नित्यता अर्थात् कार्य द्रव्य अनित्य हैं, और कारण द्रव्य नित्य है। इसी प्रकार कार्य गुण और कर्म अनित्य हैं और कारण गुण और कारण कर्म नित्य हैं। कारण गुण आशय स्वाभाविक गुण से है, और कार्य गुण से नैमित्तिक गुण का आशय है कारण कर्म चैतन का है कार्य कर्म चैतन के सहारे जड़ प्रकृति का है।

व्याख्या :
कारण कर्म नित्य है और कार्य कर्म अनित्य है। इस ही प्रकार द्रव्य, गुण कर्म ये तीनों द्रव्य के सहारे रहने वाले हैं। बिना द्रव्य के ये तीनों नहीं रह सकते ये बात तीनों में समान है। आशय ये है कि तीनों को आधार की आवश्कता है अर्थात् एक द्रव्य का प्रत्यक्ष बिना दूसरे द्रव्य के नहीं हो सकता। इसी प्रकार गुण कर्म भी बिना किसी द्रव्य के अनुभव में नहीं आ सकते और न अकेने रह ही सकते है। जिस प्रकार सामान्य और विशेष होना, द्रव्य गुण कर्म तीनों में समान है इसी प्रकार कार्य और कारण होना भी तीनों में समान हैं। ऊपर की कही हुई बातों में ये तीनों में ये तीनों समान हैं और अन्य बातों में भिन्न है। प्रश्न- कारण किसको कहते हैं? उत्तर- ज्ञान के अतिरिक्त, जो कार्य के लिए नियत हो अर्थात् जिसकी सत्ता की आवश्यकता अवश्य हो। जिसके बिना किसी प्रकार कार्य न बन से उसे कारण कहते हैं। प्रश्न- कार्यं किसको कहते हैं? उत्तर- जो पूर्व विद्यमान न हो, कारण सम्बन्ध से उत्पन्न हो कर एक पृथक् व्यक्ति को उत्पन्न करे उसको कार्य कहते हैं।

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